दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी औऱ अपनी कैबिनेट के मंत्रियों की छवि को लेकर बेहद संजीदा और चिंतित रहते हैं. उनकी भरसक कोशिश होती है कि मंत्री कहीं कुछ भी ऐसा न करें जिससे सरकार पर उंगली उठे. इसके लिए समय-समय पर पीएम मंत्रियों की क्लास लेकर उनको ज्ञान देते रहते हैं. इस बार लगता है कि पीएम का ज्ञान इन मंत्री महोदय की या तो समझ नहीं आया या फिर इनका बुरा वक्त नजदीक आ गया है.
एमजे अकबर पत्रकारिता का जाना माना नाम है. जितने तेज पत्रकार हैं, उतने ही तेज मौकापरस्त भी. कभी राजीव गांधी के खासमखास रहे अकबर ने हवा का रुख देखकर मोदी जी के साथ होने का फैसला ले लिया. उसका फायदा भी उन्हें मिला. सरकार ने राज्यसभा भेजा फिर विदेश राज्य मंत्री का ओहदा दे दिया. सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक #Metoo अभियान चल गया और मंत्री जी की अय्याशियों के किस्से छन-छनकर बाहर आने लगे. अब तक 9 महिलाओं ने मंत्री जी पर सेक्सुअल हरासमेंट के आरोप लगाए हैं. वो भी बकायदा पूरी की पूरी घटना का सिलसिलेवार विवरण देकर. पहले तो हम उन महिलाओं के नाम बताते हैं जिन्होंने मंत्री जी की करतूतों का खुलासा सबके सामने किया है. इनमें हैं प्रिया रमानी, प्रेरणा सिंह बिंद्रा, सुतापा पाल, सुजाता आनंदन, शुमा राहा, सुपर्णा शर्मा, स्मिता शर्मा, कनिका गहलौत औऱ गजाला वहाब.
हम आपको मंत्री जी की करतूतों का शिकार पीड़ित महिला पत्रकारों की जुबानी सुनाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सुपर्णा शर्मा के मुताबिक ‘यह घटना एक अखबार के लांच करने के दौरान की है, जिसमें मैंने 1993 से 1996 के बीच काम किया. उस समय मैं कोई 20 वर्ष की थी. मैं अपना पेज बना रही थी. मेरे कुर्सी के ठीक पीछे एमजे अकबर खड़े थे. तभी उन्होंने एकाएक मेरी ब्रा का पट्टा खींच दिया. मैं हैरान होकर उन पर चिल्ला पड़ी. इस घटना के कुछ दिन बाद मैं एक दिन टी शर्ट पहनकर आई जिस पर कुछ लिखा था. मैं एमजे अकबर के केबिन में गयी तो वह मेरी छाती ही निहारते रहे और उन्होंने कुछ ऐसा कहा, जिसे मैंने इग्नोर किया. महिला कर्मचारियों को सेक्सुअली हैरस करना एमजे अकबर का रोज का काम था. एक दिन एक महिला दफ्तर में स्कर्ट पहनकर आ गयी तो एमजे अकबर तुरंत अपनी केबिन से बाहर आ गए. वह नीचे झुककर कुछ उठाने को हुई तो वह उसे घूरते रहे और मुझसे पूछा- यह महिला कौन है? एमजे अकबर हमेशा उन जवान लड़कियों को अपना शिकार बनाने की कोशिश में जुटे रहते थे जो महात्वाकांक्षी थीं, आगे बढ़ना चाहती थीं और अपने काम को प्यार करती थीं.’
लेखिका शुमा राहा ने अपनी पीड़ा बयान करते हुए लिखा कि-एमजे अबकर ने मुझे 1995 में कोलकाता के ताज बंगाल होटल में इंटरव्यू के लिए बुलाया था. मेरा इंटरव्यू उन्होंने बिस्तर पर बिठाकर लिया, जहां शायद ही कोई इंटरव्यू लेता होगा. उन्होंने इंटरव्यू के बाद बताया कि मेरा सेलेक्शन हो गया है. इसके साथ ही उन्होंने मुझे शाम को साथ में ड्रिंक लेने का आफर दिया. उनका इंटरव्यू के दौरान रवैय्या औऱ ये आफर दोनों मुझे अजीब लगे और उनके इसी आफर के कारण मैंने यह नौकरी नहीं की.
अकबर के खिलाफ उनकी करतूतों का कच्चा चिट्ठा पहली बार पत्रकार प्रिया रमानी ने वोग मैगजीन में लिखे एक आर्टिकल में लिखा था कि कैसे मंत्री जी नई-नई महिलाओं को अपना शिकार बनाते थे औऱ कैसे उनके साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट करते थे. प्रिया रमानी के खुलासे के बाद तो जैसे मंत्री जी की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा सामने आ गया. एक के बाद एक 9 महिला पत्रकारों ने मंत्री जी के किस्से सार्वजनिक किए.
पत्रकार गजाला वहाब ने एक वेबसाइट में मंत्री महोदय के काले कारनामों का कच्चा-चिट्ठा खोला. जिसे पढ़कर आपका सिर शर्म से झुक जाएगा. गजाला वहाब ने अपनी आपबीती बताते हुए लिखा कि- मैं एमजे अकबर को पढ़ते हुए, उनके लेख औऱ आर्टिकल पढ़ते हुए बड़ी हुई. मेरे पत्रकार बनने के पीछे एक बड़ा कारण वो रहे. पढ़ाई के बाद 1994 में मुझे पता चला कि “एशियन एज” के दिल्ली आफिस में नौकरी है तो मैं वहां पहुंची. मैंने देखा कि एमजे अकबर का लड़कियों के साथ फ्लर्ट करना औऱ पसंदीदा लड़कियों को उनको खुश करने के बदले ईनाम देने का सिलसिला चल रहा था. लोग एशियन एज के दिल्ली दफ्तर को अकबर का हरम कहकर बुलाते थे. ऐसा कहते थे कि उनको खुश करने के लिए अखबार के सभी एडिय़नों में उनकी कोई न कोई पसंदीदा पत्रकार होती थी.
एशियन एज में मेरी नौकरी के तीसरे साल उनकी नजरें मुझ पर पड़ीं. जिसके बाद मेरा बुरा दौर शुरु हो गया. मेरी डेस्क उनके केबिन के सामने जानबूझकर शिफ्ट कर दी गयी ताकि वो अपने डेस्क पर बैठकर मुझे देख सकें. वो अपने कमरे का दरवाजा थोड़ा खोलकर रखते औऱ मुझे देखते रहते थे. अक्सर एशियन एज के इंट्रानेट नेटवर्क पर अश्लील संदेश भेजते रहते. नए शहर में अकेली लड़की और मेरी कमजोर हालत का अंदाजा अकबर को लग गया था. जिसके बाद उनका साहस और बढ़ता गया. उन्होंने बातचीत के लिए मुझे अपनी केबिन में बुलाना शुरू कर दिया. कई बार वो मुझे अपने बिल्कुल सामने बैठा लिया करते थे. कई बार वे मुझे अपने केबिन में दूर किनारे पर रखी डिक्शनरी लाने को कहते. चूंकि डिक्शनरी इतनी नीचे रखी होती थी कि शब्द देखने के लिए किसी को या तो बिल्कुल झुकना पड़ता था या फिर बैठना होता था. 1997 के ठंड के दिनों में एक दिन मैं डिक्शनरी पर झुककर किसी शब्द का अर्थ खोज रही थी कि वो छुपकर मेरे पीछे आया और उसने मेरी कमर पकड़ ली. मैं डरकर कांपने लगी और किसी तरह से खड़ी हो सकी. उसने अपने हाथ मेरी छातियों और हिप्स पर फेरे. मैंने उन्हें हटाने की कोशिश की लेकिन वो मेरी कमर पर बिल्कुल चिपक गए थे. वे मेरी ब्रेस्ट को रगड़ रहे थे. बड़ी कशमकश के बाद आखिर में उसने मुझे छोड़ दिया. इस दौरान वह धूर्ततापूर्ण तरीके से मुस्कुराता रहा.
अगली शाम उसने मुझे अपने केबिन में बुलाया. उसने मेरे केबिन में जाते ही दरवाजा बंद कर लिया. मैंने वहां से निकलने की कोशिश की लेकिन उसने मुझे पकड़ लिया और मुझे किस करने के लिए झुका. मैं अकबर को हटाने के प्रयास करती रही लेकिन सफल नहीं रही. फिर अपनी हवस मिटाने के बाद उसने मुझे छोड़ दिया. मैं बेहद परेशान होकर आफिस के बाहर आई औऱ सुनसान स्थान पाकर मैं फुटपाथ पर बैठ गयी और चीख-चीखकर रोने लगी. मेरी एक सहयोगी संजरी चटर्जी मेरा पीछा करते हुए वहां पहुंच गयी. उसने मेरी आंखों से आंसू बहते हुए केबिन से बाहर आते देख लिया था. वो कुछ देर मेरे पास बैठी रही. उसने सुझाव दिया कि तुम इसके बारे में सीमा मुस्तफा को क्यों नहीं बताती. शायद वो अकबर से बात कर सकें और एक बार अगर वो जान जाते हैं कि वो जानती हैं तो शायद वो पीछे हट जाएं. सीमा उस समय ब्यूरोचीफ थीं. हम दोनों वापस दफ्तर आए. मैं उनके कमरे में गयी और उन्हें अपनी पूरी कहानी बतायी. उन्होंने मुझे सुना लेकिन मेरी कोई मदद नहीं की. ये 1997 का वक्त था. मैं बिल्कुल अकेली, उलझन में, असहाय और डरी हुई थी.
आखिर में मैं अपनी डेस्क पर लौटी. मैंने एशियन एज के मैसेज सिस्टम से एक संदेश भेजा कि उनका ये व्यवहार मेरे दिमाग में उनकी छवि को खराब करने वाला है. एशियन एज के दफ्तर में बिताया गया प्रत्येक क्षण बहुत डरावना था. उनकी हरकतें लगातार जारी थी. कभी वे मुझे किस करते, कभी अपना शरीर मेरे शरीर में रगड़ते, कभी मेरे साथ यौन हिंसा करते. ये सब मेरे लिए बेहद तकलीफदेह था. एक दिन मैंने फैसला किया कि मुझे तत्काल अखबार छोड़ देना चाहिए. मैंने साहस जुटाकर उनसे बताया कि मैं नौकरी छोड़ रही हूं. मेरे इतना कहते ही अकबर भड़क उठे. अकबर ने मुझे बताया कि वो अहमदाबाद से एक संस्करण लांच कर रहे हैं और चाहते हैं कि मैं वहां शिफ्ट हो जाऊं. मैंने तय कर लिया था कि अब इस माहौल में मैं काम नहीं करूंगी. आखिरकार अकबर के निजी सचिव को अपने इस्तीफे वाले सीलबंद लिफाफे को देने के बाद एक दिन मैंने दफ्तर छोड़ दिया. पिछले 21 सालों में मैंने ये सब कुछ छुपाकर रखा हुआ था. मैंने तय कर लिया था कि मुझे एक पीड़ित नहीं बनना है और न ही एक राक्षस का व्याभिचार मेरे करिअर को खत्म कर सकता है. अब सबकुछ सामने लाने के बाद शायद मुझे आने वाले डरावने सपनों से मुक्ति मिल सके.
तो इन पीड़ित महिला पत्रकारों की आपबीती सुनकर आपको भी मंत्री जी के कारनामों पर घिन आने लगी होगी. वाकई एमजे अकबर ने न सिर्फ पत्रकारिता जैसे सम्मानित पेशे को कलंकित करने का काम किया बल्कि राजनीति में भी घुसकर उसे भी अपमानित कर डाला. देखना है शुचिता औऱ नैतिकता की बात करने वाली पार्टी उनके साथ क्या करती है.