शशांक द्विवेदी, खजुराहो। नृत्यों में जीवन का आनंद है, उमंग है, उल्लास है। नृत्य हमारी संस्कृति को आनंददायी अभिव्यक्ति देते हैं। यहां खजुराहो नृत्य महोत्सव में भारतीय शास्त्रीय नृत्यों का ऐसा कोलाज बनता है कि जिसका हरेक रंग चटकीला है। महोत्सव के चौथे दिन भी नृत्यों की चैपल थिरकन, देह गतियों भाव भंगिमाओं से भारतीय संस्कृति का वैभव दमक उठा। आज मोमिता घोष वत्स का ओडिसी, पद्मश्री नलिनी कमलिनी, मार्गी मधु, सुचित्रा हरमलकर,और रोशाली राजकुमारी के समूह ने अलग अलग नृत्यों की प्रस्तुतियों से रसिकों को विभोर कर दिया।
महोत्सव में आज की शुरुआत मोमिटा घोष वत्स के ओडिसी नृत्य से हुई। उन्होंने विष्णु ध्यान से अपने नृत्य की शुरुआत की। राग विभास और एक ताल में निबद्ध साजिया आलम की संगीत रचना पर मोमिता जी ने बड़े ही मनोहारी ढंग से अपने नृत अभिनय और भंगिमाओं से भगवान विष्णु को साकार किया। अगली पेशकश में उन्होंने समध्वनि की प्रस्तुति दी। यह शुद्ध ओडिसी नृत्य था। इस प्रस्तुति में मोमिता जी ने अंग क्रियाओं और लय का तालमेल दिखाया। राग गोरख कल्याण और एक ताल में निबद्ध रचना पर उन्होंने विविध लायकारियों का चलन दिखाया।
पद्मश्री नलिनी कमलिनी का बेहतरीन कथक नृत्य
आज की दूसरी प्रस्तुति में पद्मश्री नलिनी कमलिनी का बेहतरीन कथक नृत्य हुआ। कथक के बनारस घराने की प्रतिनिधि कलाकार नलिनी कमलिनी ने शिव स्तुति से कंदरिया महादेव को नृत्यांजलि अर्पित की। राग मालकौंस के सुरों में पागी और 12 मात्रा में निबद्ध ध्रुपद अंग की रचना ” चंद्रमणि ललाट भोला भस्म अंगार” पर दोनों बहनों ने नृत्य की प्रस्तुति से शिव को साकार करने की कोशिश की। इसके पश्चात तीन ताल में कलावती के लहरे पर उन्होंने शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने पैरों की तैयारी के साथ सवाल जवाब, और विविधतापूर्ण लयकारी का प्रदर्शन किया।
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दशावतार पर ओजपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति
अगली प्रस्तुति में उन्होंने जयदेव कृत दशावतार पर ओजपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति दी। समापन उन्होंने द्रुत तीनताल में तराने से किया। इन प्रस्तुतियों में उनके साथ योगिता गड़ीकर, निवेदिता पंड्या, साक्षी सोलंकी, उन्नति जैन, फागुनी जोशी, महक पांडे और श्वेता कुशवाह ने साथ दिया। साज संगत में तबले पर मृणाल नागर, गायन में वैशाली बकोरे। मयंक स्वर्णकार, और सितार पर स्मिता बाजपेई ने साथ दिया।
भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास
मणिपुरी नृत्य की जानी मानी कलाकार रोशली राजकुमारी के समूह ने भी आज महोत्सव में अपनी प्रस्तुति दी। इस समूह ने भागवत परंपरा की पंचाध्यायी पर आधारित बसंत रास की प्रस्तुति दी। जयदेव की कृतियों पर मणिपुरी नर्तकों की टोली ने बड़े ही श्रंगारिक ढंग से यह प्रस्तुति दी। वास्तव में ये एक तरह की रासलीला थी जिसमे नर्तकों के हाव भाव और चाल बेहद संयमित थे। इस प्रस्तुति में संध्यादेवी, लिंडा लेईसंघथेम विद्याश्वरी देवी, मोनिका राकेश्वरी देवी, सनाथोंबी देवी ने नृत्य में सहयोग किया। जबकि गायन में लांसन चानू,ने साथ दिया। संगीत राजकुमार उपेंद्रो सिंह और नंदीकुमार सिंह का था। समूह ने राकेश सिंह के निर्देशन में यह प्रस्तुति दी।
प्रसिद्ध कोच्चि कोडिअट्टम नृत्य की प्रस्तुति
अंतिम पेशकश केरल के प्रसिद्ध कोच्चि कोडिअट्टम नृत्य की रही। केरल के कलाकार मार्गी मधु और उनके साथियों ने इस नृत्य के माध्यम से जटायु मोक्ष की लीला का प्रदर्शन किया। दरअसल यह नृत्य नाटिका थी । इसमें गुरु मार्गी मधु चक्यार,ने रावण सौ इंदु ने सीता, श्री हरि चकयार ने जटायु का अभिनय किया। इस प्रस्तुति में सीता हरण से लेकर जटायु मोक्ष तक की लीला का वर्णन था।मार्गी मधु ने ये पूरी लीला बड़े ही सलीके से पेश की। कार्यक्रम का संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।
समारोह में सतपाल वडाली ने बांधा समां
समारोह में सतपाल वडाली एवं साथी, पंजाब द्वारा सूफी और पंजाबी गायन किया गया। उन्होंने तू माने या ना माने दिलदारा…, तुझे देखा तो लगा मुझे ऐसे…कि जैसे मेरी ईद हो गई…, छाप तिलक सब छीनी…, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी…, मेरे रश्के कमर…, मस्त नजरों से अल्लाह बचाए…, दमा दम मस्त कलंदर… जैसे कई गीतों की प्रस्तुति दी।
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