रायपुर. या देवी सर्व भूतेषु भक्ति रूपेन संश्रिता. हमारे समृद्ध एवं समाधान परक पुराणों में जीवन के परम अर्थ को प्राप्त करने के तीन मार्ग बताये गये है। जिनके माध्यम से जीवन का सत्य अनावृत्त होता है। ज्ञान, कर्म, भक्ति ये तीन साधन है। माता के कृपा मयी आदि शक्ति माता जगदम्बा का एक ममता मयी स्वरूप भक्ति है। श्री राम चरित मानस के माध्यम से देखे। माता सीता साक्षात भक्ति स्वरूप है। ॥ ज्ञान भगति बैराग जनु सोहत धरे शरीर॥

चित्रकूट मे ज्ञान स्वरूप श्री राम भक्ति स्वरूपा माता सीता एवं वैराग्य शिरोमणि श्री लक्ष्मण का वर्णन है। हमारे पुराणों में 2 प्रकार की भगति है। परा भक्ति एवं अपरा भक्ति। इसे बानरी भक्ति एवं मार्जरी भक्ति के रुप मे समझा जा सकता है। बन्दरिया का बच्चा अपनी मां की छाती से पुरा ताकत से लिपटा रहता है। बन्दरिया एक डाल से दूसरे डाल पर कूदती है।इसमे बच्चे का यह भाव रहता “मै हूं ना”।

डॉ. विजय दुबे

यदि कूदने के उपक्रम मे बच्चा छूट कर गिर जाता है तो मां पर कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीँ होती। पर बिल्ली अपने बच्चे को.मुंह मे दबाकर एक स्थान दे दूसरे स्थान ले जाती है। इसमे यह भाव रहता है की “आप है ना”। यदि बिल्ली का बच्चा छूटकर गिरता है इसमे बिल्ली की जिम्मेदारी होती है। यही परा एवं अपरा भक्ति है। वैसे मानस मे नवधा भक्ति का भी वर्णन है।

श्री राम चरित मानस मे भरत लालजी को भगति को शिरोमणि कहा गया है। देवगुरु बृहस्पति ने कहा है. ” भगत शिरोमणि भरत ते जनु डरपहु सुरपाल॥ श्री भरत निष्काम भक्ति के प्रणेता है।मेरे सब कुछ राम और सीता ही है। समस्त उपलब्धिया राष्ट्र एवं संस्कॄति की धरोहर है॥ सम्पति सब रघुपति के आही॥

भक्ति जीवन मे सहजता लाती है। व्यवहार मे शील संयम का संचार करती है।मां के इस स्वरूप की आराधना से जीवन निर्द्वन्द एवं निष्कपट बनाता है। भक्ति का निर्झर का शीतल भाव प्रवाह मधुमास की रसवंती धार की भांति होता है। जिसके अवगाहन से चिंतन मे शुचिता एवं आचरण मे पवित्रता आती है। श्री राम के वन गमन के बाद भक्ति शिरोमणि भरत श्री राम को वापस लाने जब चित्रकूट जाते है। निषाद की भेंट के बाद वे निषाद से पूछते है।अयोध्या के भव्य राज्य प्रसाद मे विश्राम करने वाले प्रभु यहां कहा विश्राम किए। निषाद ने शिसुंपा का वृक्ष दिखाया जिसके नीचे श्री राम एवं सीता ने विश्राम किया।॥ जहा सिसुपा तरि रघुबर कीन्ह विश्राम॥ श्री भरत उस स्थल की तीर्थ की भांति प्रणाम किया। वहां उन्हे दो अलौकिक अवलंबप्राप्त हुए। एक श्री राम के चरणों के चिन्ह की धूल दूसरी माता सीता के आभूषणों से गिरे हुए कनक बिंदु मिले मूल्य की दृष्टि से दोनो मे भेद है। अब भक्ति विलक्षण भाव दृश्य देखे।

॥ चरण रेख रज आखिन्ह लाई॥
श्री राम के चरणों की धूल को आंख मे लगाया। दूसरा कनक बिंदु॥ दुई चारिक देखैं राखे शीस सिय सम लेखे॥ कनक बिंदु को सिय सम भक्ति स्वरूप भाव को अपने शीश पर रखकर केशों की जटा बना ली। इसका तात्विक और आध्यात्मिक अर्थ यह हुआ।जिसकी दृष्टि राष्ट्र की उदार परम्पराओं का बिंब हो स्मरण हो। जिसका चिंतन भक्ति के नियंत्रण मे हो। ममता दया करुणा हो वह देश की तकदीर और तस्वीर बदल सकता है। उसमे दिशा और दशा के नियंत्रण का सामर्थ्य होता है। उसका चिंतन सिर्फ चिंतन नहीँ होता सिद्धांत बन जाता है। वह राष्ट्र का.बिंब बन सकता है।पहचान बन जाता है। चाहे वह श्री मद भागवत के भरत हो य राम चरित मानस के भरत वे राष्ट्र के पहचान के रुप मे अजनाभ वर्ष को भारत वर्ष बना दिया। 14 वर्षों तक अयोध्या प्रेमतत्व एवं अमृततत्व भाव प्रसार से तृप्त किया। 14 वर्षों के बाद लंका विजय के बाद श्री राम जब अयोध्या वापस आये। वहा बड़ा मार्मिक दृश्य है जहा मां जगदम्बा का भक्ति स्वरूप अनावृत हुआ।

॥ पुनि करुणा निधि भरत हंकारे निज कर जटा राम निरवारे॥
श्री राम ने अपने हाथो से भरत की जटाओ को सुलझाया। मानो राम कह रहे हो भरत सीता के उस दिव्य भक्ति के प्रकाश मणि को संसार को प्रकाशित करने का समय आ गया है।जीवन का उद्देश्य प्रभावित नहीँ प्रकाशित करना होता है। श्री राम जटा को सुलझा कर उस दिव्य मणि को सबके सामने रखा। भक्ति और संस्कॄति की संजीवनी जो निश्चेष्ट चित्त चेतना नई चेतना का सामर्थ रखती है। उसे अब गोपनीय मत रखो। वह बंधुत्व और समरसता की भाव भूमि है। जिस व्यक्ति का प्रत्येक आचरण उसका उठना बैठना खाना पीना और व्यवहार एैसा होता है जब हर जाति वर्ग सम्प्रदाय और मान्यता के लोग उसे अपना मानते है वह मात्र विचार धारा नहीँ होती वह वैचारिक प्रबंधन का सिद्धांत बन जाता है। तुमने भक्ति को शिरोधार्य करके संसार को समाधान दिया है।

॥ रघुपति भगति अमिय अगाहू,
कीन्हेहु सुलभ सुधा वसुधाहू॥
तुमने अपनी आराधना एवं भक्ति के.माध्यम से आदि शक्ति सीता के भक्ति के स्वरूप की कठिन साधना की है। इसलिए भैय्या भरत आप भक्ति के शिरोमणि हो जीवन शांति, वैभव, सद्भाव, समरसता और सामंजस्य मां के भक्ति स्वरूप के शरण मे ही है। या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेन संश्रिता.

मानस भागवत प्रवक्ता- डॉ. विजय दुबे