‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली’ ये कहावत तो अपने कई बार सुनी होगी। इसका अर्थ भी जानते होंगें। जिसमें राजा भोज का मतलब हैसियत में बड़ा और गंगू तेली का मतलब औकात में छोटा। पर क्या इसके पीछे का रहस्य पता है। अगर नहीं तो आज ये आर्टिकल आपको इतिहास के उस पन्ने में लेकर जाएगा जहां से इस कहावत की शुरुआत हुई है।
‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली’ का अर्थ
ये कहावत सुन कर ऐसा लगता है कि इसके पीछे दो लोग रहे होंगे। जिसमें एक राजा होगा तो दूसरा कोई आम आदमी। लेकिन कभी ये सोचा की इस कहावत में कोई तीसरा भी हुआ तो? अब तीसरा पढ़कर आपको लगेगा की हम ‘पति-पत्नी और वो’ की बात कर रहे हैं, पर ऐसा बिलकुल नहीं है बंधु। आइए जानते है कौन है वो तीसरा।
कहावत का इतिहास
कहावत में राजा भोज का जिक्र हुआ है, तो ये कहानी भी वहीं से शुरू करते हैं। राजभोज परमार वंश के 9वें राजा थे। राजा भोज ने 55 वर्ष के जीवन में कई लड़ाइयां लड़ी और इसमें जीते भी। मध्य प्रदेश का धार उनकी राजधानी हुआ करती थी। वहीं उन्होंने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल शहर को भी बसाया था। उस समय भोपाल को भोजपाल के नाम से जाना जाता था। जो वक्त के साथ पहले भूपाल और अब भोपाल के नाम से जाना जाता है। राजा भोज बड़े विद्वान थे। उनके पास धर्म, व्याकरण, भाषा, कविता आदि का ज्ञान था। इसके साथ ही राजा भोज ने सरस्वतीकण्ठाभरण, शृंगारमंजरी, चम्पूरामायण जैसे कई ग्रन्थ भी लिखे जिसमें से आज 80 उपलब्ध भी हैं।
अब गंगू का जिक्र करते है
परमार राजा अर्जुन वर्मन के एक लेख से ये जानकारी मिलती है कि एक बार चेदिदेश के राजा गांगेयदेव कलचुरी और राजा भोज के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। जहां राजा भोज और गांगेयदेव कलचुरी की लड़ाई चल रही थी, इधर जयसिंह तेलंग नाम के एक राजा भी बीच में कूद पड़े और उन्होंने गांगेयदेव का साथ दिया। तो एक तरफ राजा भोज और दूसरी तरफ गांगेयदेव और तीसरी तरह जयसिंह तेलंग। फिर शुरू हुई खूब लड़ाई।
एक बार तो ऐसा आया जब गोदावरी के तट पर राजा भोज को घेर लिया गया। लेकिन इसके बावजूद राजा भोज कोंकण जीतने में सफल रहे। युद्ध में गांगेयदेव कलचुरी और जयसिंह तेलंग की बुरी तरह से हार हुई। जिसके बाद से ही ‘कहां राजा भोज और कहां गांगेय तैलंग’ की कहावत लोगों के बीच प्रचलित हुई। जैसे-जैसे समय निकलता गया वैसे-वैसे लोगों ने कहावत बदल दी और करदी ‘कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली’।
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