शशांक द्विवेदी, खजुराहो। मध्य प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिए सार्थक मंच उपलब्ध कराने के लिए प्रतिमाह ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में किसी एक जनजातीय चित्रकार की प्रदर्शनी सह विक्रय का संयोजन शलाका नाम से किया जाता है। इसी कड़ी में 3 मार्च से भील समुदाय की चित्रकार रेसु गणावा के चित्रों की प्रदर्शनी सह-विक्रय का संयोजन किया गया है। 12वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी 30 मार्च तक चलेगी।
युवा भीली चित्रकार रेसु गणावा का जन्म मध्य प्रदेश के जनजातीय बहुल झाबुआ जिले के नयागांव खालसा में हुआ। जो कि गुजरात सीमा से सटा हुआ है। कृषक पिता रामा डाबर की सात संतानों में रेसु गणावा सबसे छोटी और सभी की लाडली रहीं। जंगल-पहाड़ों से घिरे ग्रामीण वातावरण और प्रकृति के सान्निध्य में आपका बचपन गुजरा। गांव में या उसके आसपास कोई स्कूल न होने से आप शिक्षा से वंचित रहीं।
गांव के ही दिलीप गणावा से उनका विवाह अल्पायु में हो गया था। उनके तीन बच्चे हैं। पति दिलीप गणावा भी भीली चित्रकला में पारंगत है। पति के सान्निध्य और मार्गदर्शन में ही उन्होंने चित्रकला की बारीकियों को जाना-समझा और सीखा और उनके चित्रकर्म में सहायता भी की। विख्यात भीली चित्रकार पद्मश्री भूरीबाई उनके पारिवारिक रिश्ते में लगती हैं। उनके चित्रकर्म की सफल यात्रा से वे अत्यन्त प्रेरित हैं।
वर्तमान में रेसु गणावा गांव में रहकर ही चित्रकला कर्म में निरंतर सृजनरत हैं। उनके चित्रों में जंगल, पशु-पक्षी, पर्यावरण के साथ भीली जातीय संस्कार विशेषतौर पर दिखाई देते हैं। उनकी अपनी सफलता का संपूर्ण श्रेय पति दिलीप गणावा को देती हैं, जिनकी सतत् प्रेरणा ने उनकी चित्रकला को सुघड़ बनाया।
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