डब्बू ठाकुर, कोटा. कहते हैं कि जो भी माँ महामाया मंदिर की चौखट पर आया वो खाली हाथ नहीं गया, जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है उतनी ही अनोखी इस मंदिर की कहानी है. यहां बैठी मां महामाया देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाता है. यहां तक की कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है. लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते है. देवी मां के इस मंदिर को 51 शक्ति पीठ में एक माना जाता है. महामाया देवी रतनपुर में इस वर्ष 31 हजार से ऊपर मनोकामना ज्योति कलश जलाये जा रहे है.

माता के दर्शन करने श्रद्धालुओं की लगी रही लंबी कतार एक लाख से भी ज्यादा श्रद्धालुओं में माता के दर्शन किये है. सुबह 6 बजे से ही महामाया मंदिर में माता के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ने लगती है. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस व प्रशासन की अधिकारियों और कर्मचारियों की डियूटी लगी हुई है मंदिर के ट्रस्ट के अधिकारि व कर्मचारी सुरक्षा व्यवस्था में लगे रहते है. महामाया मंदिर में इस बार 48 सीसीटीव कैमरे से भी नजर रखी जा रही है.

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से 25 किलोमीटर पर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है. त्रिपुरी के कलचुरियों की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया. राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया. श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था.

मंदिर के निर्माण की है कई किवदंतियां

1045 ई में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया. अर्धरात्रि में जब राजा की आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है. इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे. सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया. 1050 ई में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया.

माता सती का गिरा था स्कंध

माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे. इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए. इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ रूप में मान्यता मिली. महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था. भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था. इसीलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया. यहां प्रात: काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है. माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाता है.