One Nation-One Election : लोकसभा, विधानसभा और विभिन्न निकायों के एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है. यह उच्च स्तरीय समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है. ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर गठित कमेटी का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं. ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की रिपोर्ट 18626 पन्नों की है. इस रिपोर्ट को तैयार करने में करीब सात महीना का समय लगा है.

केंद्र सरकार द्वारा गठित इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप भी शामिल हैं.

कमेटी ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद पाया कि भारत की आजादी के पहले दो दशकों के बाद एक साथ चुनाव नहीं होने के कारण अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है. प्रारंभ में हर दस साल में दो चुनाव होते थे. अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं. इससे सरकार, व्यवसायों, श्रमिकों, न्यायालयों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिकों पर भारी बोझ पड़ता है. इसलिए, समिति सिफारिश की है कि सरकार को एक साथ चुनावों के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से तंत्र विकसित करना चाहिए.

समिति की सिफारिशों के मुताबिक, पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे. दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव को भी इन दोनों चुनावों के साथ कराया जाए.

कमेटी ने इस बात की भी सिफारिश की है कि लोकसभा, विधानसभा, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए एक जैसी मतदाता सूची और पहचान पत्र की व्यवस्था की जानी चाहिए. इसके लिए अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है. भारत निर्वाचन आयोग राज्य निर्वाचन आयोग के परामर्श से मतदाता सूची और फोटो पहचान पत्र बनाएगा. इसके तहत तैयार की गई मतदाता सूची और निर्वाचक का फोटो पहचान पत्र अनुच्छेद 325 के तहत चुनाव आयोग या राज्य चुनाव आयोग के पहले से तैयार किए गए किसी भी मतदाता सूची और फोटो पहचान पत्र का स्थान लेगा.

कमेटी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की पैरवी करते हुए केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “समाज को बंधन में बांधे रहना संभव नहीं है. समाज बढ़ता है. उसकी आवश्यकताएं बदलती हैं. उन आवश्यकताओं के अनुरूप संविधान और कानूनों को बदलना पड़ सकता है. कोई भी एक पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को बांध नहीं सकती है. इसलिए बुद्धिमानी से तैयार किया गया प्रत्येक संविधान अपने स्वयं के संशोधन का प्रावधान करता है.”

कमेटी ने कहा कि विचार-विमर्श के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारी सिफारिशों से पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और मतदाताओं का विश्वास काफी बढ़ जाएगा. एक साथ चुनाव कराने के लिए जबरदस्त समर्थन मिलने की उम्मीद है. विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को भी बल मिलेगा. लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को गहराई मिलेगी. भारत की आकांक्षाएं भी साकार होंगी.