प्रतीक चौहान. रायपुर. छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में मेडिकल माफिया सक्रिय है. मेडिकल माफिया इसलिए क्योंकि यहां चल रहा मेडिकल माफिया का गैंग शासन को नुकसान पहुंचाकर मरीज से सीधे पैसे अपने निजी बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करा रहे है और ये राशि 100-500 या 1 हजार नहीं बल्कि 80-80 हजार रूपए है. इस पूरे खेल का खुलासा आज लल्लूराम डॉट की इस खबर में होने जा रहा है. यहां ये बताना जरूरी है कि इस खेल को सुनकर अंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ एसबीएस नेताम भी दंग रह गए और उन्होंने बेबाकी से ये कहा कि आप (लल्लूराम) इसकी जानकारी मुझे दीजिए मैं पूरे मामले में कार्रवाई करूंगा.
हुआ कुछ यूं कि 7 मार्च 2024 को अंबेडकर अस्पताल में 33 वर्षीय युवक हार्ट अटैक के बाद पहुंचा. मरीज का नाम पूरन मल जाट है. वे मूलतः राजस्थान के उदयपुर का रहने वाला है. अटैक के बाद परिजन उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले गए. यहां से उसे अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया. जहां मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए एंजियोग्राफी के साथ-साथ एंजियोप्लास्टि प्लान की गई. लेकिन यहां अस्पताल के स्टॉफ ने मिलीभगत कर स्टंट और अन्य सामान के पैसे अंबेडकर अस्पताल के अकाउंट में न लेकर भूपेश लहरे नाम के व्यक्ति के अकाउंट में लिए. ये राशि 50 हजार और 30 हजार (2 ट्रांजेक्शन) में कुल 80 हजार रुपए हुई.
लल्लूराम की पड़ताल में ये पता चला कि ये राशि अस्पताल के स्टॉफ के कहने पर परिजनों ने भूपेश लहरे के अकाउंट में ट्रांसफर की और ये स्टंट सप्लाई करने वाली कंपनी का स्टॉफ है. जो रैगूलर अंबेडकर अस्पताल में सप्लाई का काम करते है. अस्पताल के मुताबिक ये अधिकृत कंपनी का स्टॉफ है.
लल्लूराम डॉट कॉम के पास भूपेश लहरे के अकाउंट में जमा हुए पैसे की पूरी ट्रांजेक्शन डिटेल उपलब्ध है, जो हमे मरीज के परिजनों ने उपलब्ध कराई है.
अस्पताल के खाते में जमा नहीं हुआ कोई पैसा
लल्लूराम इस पूरे मामले की पड़ताल में अंबेडकर अस्पताल पहुंचा. हमने पहले अस्पताल के उस एमएसडब्ल्यू स्टॉफ से बात की, जिसके कहने पर परिजनों ने ये राशि भूपेश लहरे नाम के व्यक्ति के अकाउंट में ट्रांसफर की. उसका कहना था कि मरीज के परिजनों ने पूरा पैसा नहीं दिया है, इसलिए उसे बिल नहीं दिया गया. लेकिन लल्लूराम ने उन्हें बताया कि मरीज को तो अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया है, जिसके प्रमाण है. तो वो चुप हो गया, फिर कहना कि बाकी पैसा आएगा तो उसे बिल दे दिया जाएगा.
इसके बाद लल्लूराम की टीम ने अस्पताल प्रबंधन से ये जानकारी ली कि उक्त मरीज के नाम पर ली हुई राशि (80 हजार) रूपए अस्पताल के खाते में जमा हुए है ? तो पता चला कि 15 मार्च यानी आज शुक्रवार तक कोई राशि जमा नहीं हुई है. इसके बाद टीम ने पुनः एमएसडब्ल्यू स्टॉफ से बात की, कि राशि तो अस्पताल में जमा नहीं हुई है. जिसके बाद उसका कहना था कि भूपेश लहरे ने अपने बैंक अकाउंट से कैश निकाल लिए है और वो अस्पताल में जमा कराने वाला है.
हमने इसके बाद मरीज के परिजनों से बातचीत की. उन्होंने बताया कि वे बिना रसीद के 80 हजार रूपए ले चुका है और करीब 31 हजार रूपए मांग रहा है. लेकिन जब तक हमे पूरा बिल नहीं मिलेगा हम पैसे कैसे देंगे? मरीज के परिजन ने ये भी बताया कि उक्त एमएसडब्ल्यू स्टॉफ ने ये भी कहा था कि यदि वो रसीद नहीं मांगेगा तो उसे बाकी पैसे नहीं देने होंगे.
यही कारण है कि मरीज कागजों में अस्पताल से 9 मार्च को डिस्चार्ज किया जा चुका है, न कि वो अस्पताल से भागा या लामा हुआ.
अस्पताल में कही नहीं लगा बोर्ड, स्टॉफ को पैसे न दें… काउंटर में नहीं लेते अकाउंट में पैसे ट्रांसफर
इस पूरे मामले में ऐसी कई छोटी-छोटी चीजे है, जिसका फायदा उठाकर मेडिकल माफिया अस्पताल में सक्रिय है. ये जो 80 हजार रूपए की राशि ली गई, वो मेडिकल माफिया के लोग बतौर सिक्यूरिटी डिपाजिट के रूप में बता रहे है. लेकिन अंबेडकर अस्पताल में भर्ती होने के बाद मरीज को जो भी दवाई या ऑपरेशन में सामान लगना है उसका पैसा अंबेडकर अस्पताल के अकाउंट में ही जमा होना है. अस्पताल में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है कि यहां कोई भी पैसा अपने बैंक अकाउंट में किसी भी परिस्थित में ले.
अस्पताल के काउंटर नंबर 7 में पहुंचने के बाद ये भी पता चला कि वहां सिर्फ कैश लिए जाने की जानकारी दी जाती है. ऐसे में यदि रात 9 बजे किसी मरीज को अटैक के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़े और रात में ही उसकी एंजियोप्लास्टि करनी पड़े तो इसके लिए मरीज को रात में ही 80 हजार से 1 लाख रूपए कैश जुगाड़ करने पड़ते है. क्योंकि अस्पताल में मौजूद मेडिकल माफिया मरीज को ये नहीं बताते कि राशि अस्पताल के बैंक अकाउंट में जमा हो सकती है और न वहां इसका कोई बोर्ड लगा है.
आप जानकारी दीजिए मैं कार्रवाई करूंगा: डॉ एसबीएस नेताम
लल्लूराम डॉट कॉम ने इस पूरे मामले में अंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ एसबीएस नेताम से बातचीत की. उन्होंने स्पष्ट कहा कि मरीज से किसी भी प्रकार का कोई भी पैसा किसी स्टॉफ या मेडिकल का सामान सप्लाई करने वाले वेंडर को करने का कोई नियम नहीं है. उन्होंने कहा कि मरीज का पूरा इलाज अस्पताल में होना है और जिन मरीजों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है उन्हें शासन के नियमों के तहत राशि देनी होती है, जो सीधे अस्पताल में जमा होती है और अस्पताल प्रबंधन फिर संबंधित वेंडर को शासन द्वारा निर्धारित दर के हिसाब से देते है. डॉ नेताम ने कहा कि आप मुझे पूरी जानकारी उपलब्ध कराइये, मैं इस पर कार्रवाई करूंगा.