कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर को बड़ी सौगात मिली है, यूनेस्को ने ग्वालियर के ऐतिहासिक किले को हेरिटेज कैटेगरी में शामिल किया है। यूनेस्को ने हेरिटेज कैटेगिरी की अस्थाई सूची में किले को शामिल कर लिया है। यूनेस्को की हेरिटेज कैटेगरी में जगह मिलने से पर्यटन बढ़ेगा। ख़ास बात यह भी है कि नवंबर 2023 में यूनेस्को ने ग्वालियर को  “सिटी आफ म्यूजिक” का दर्जा भी दिया था।

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मध्य प्रदेश में ग्वालियर चंबल अंचल अपने अंदर बहुत सी ऐतिहासिक विरासतों को सहेजा हुआ है। यही वजह है कि ग्वालियर का ऐतिहासिक किला सहित मध्य प्रदेश की 6 विरासत स्थलों को यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में शामिल किए जाने के लिए दावेदारी मजबूत हो गई है। इन सभी जगहों को यूनेस्को के विश्व हेरीटेज सेंटर द्वारा भारत की अस्थायी सूची में जोड़ लिया गया है। 

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दरअसल किसी भी प्रसिद्ध स्थल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए पहले यूनेस्को की अस्थाई सूची में शामिल कराया जाता है। इसके लिए सितंबर 2019 में कई प्रस्ताव यूनेस्को को भेजे गए थे, इनमें से 6 जगह का चयन यूनेस्को के द्वारा किया गया है। जिनमे ग्वालियर का ऐतिहासिक किला भी शामिल है।

क्यों खास है ग्वालियर किला?

15वीं शताब्दी का ग्वालियर का किला मानसिंह महल के नाम से जाना जाता है, यह हिंदुस्तान का पहला ऐसा किला माना जाता है जो पूरी तरह से हिंदू स्थापत्य शैली में बलुआ पत्थर से बनाया गया है। इस किले की लंबाई साढ़े 3 किलोमीटर और ऊंचाई 300 फीट है। यह किला हिंदुस्तान के बड़े किलो में शुमार है। 
किले की सबसे पहले नींव छठी शताब्दी में राजपूत योद्धा सूरज सेन के जरिए रखी गई थी। अलग-अलग शासको के जरिए आक्रमण और शासन करने के बाद तोमर वंश ने 1398 में किले पर कब्जा किया। तोमरो में सबसे प्रसिद्ध मानसिंह थे, उन्होंने किले के अंदर कई स्मारकों को बनवाया था, यही वजह है कि विश्व के मानचित्र पर अब ग्वालियर का किला भी धमकेगा।

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