जानिये महाकाल के भस्म आरती की कहानी, कैसे हुई थी शुरुआत...

एक दूषण नाम के असुर ने पूरे उज्जैन में आतंक मचा रखा था, भगवान शिव को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने उस असुर को मार दिया.

असुर से छुटकारा पाने के बाद गांव वालों ने भगवान शिव से उसी गांव में रहने का आग्रह किया.

गांव वालों का इतना प्यार देख भगवान शिव वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए,क्योंकि भगवान शिव ने असुर दूषण को भस्म किया था

और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया था इसलिए इस मंदिर का नाम तब से महाकालेश्वर रख दिया गया और तभी से यहां ज्योतिर्लिंग की भस्मा आरती होने लगी.

तब से यहां हर दिन सुबह सबसे पहले जलने वाली चिता की राख से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है.

इस भस्म के लिए देश भर से लोग पहले से रजिस्ट्रेशन कराते हैं और मृत्यु के बाद उनकी भस्म से भगवान शिव की आरती होती है.

वैसे अब बीते कुछ सालों से मंदिर के पुजारियों ने चिता की राख लेने की जगह गाय के गोबर से बने कंडों की राख से आरती करनी शुरू कर दी है.

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