चंडीगढ़ : पूरे देश में 370 सीट जीतने का दावा करने वाली बीजेपी को पंजाब में झटका लगा है। एनडीए के पुराने पार्टनर अकाली दल ने समझौते से इनकार कर दिया। इसके बाद बीजेपी ने राज्य की सभी 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। पंजाब में एक जून को सभी 13 सीटों पर वोट डाले जाएंगे।
सूत्रों के अनुसार, दोनों दलों के बीच गठबंधन लगभग तय था। अकाली दल के हिस्से में 8 सीटें दी गईं थी। बीजेपी ने भी 5 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति दे दी थी। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़, मनप्रीत और पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह भी सीट बंटवारे पर सहमत थे, मगर अचानक अकाली दल ने अंतिम समय में पैर पीछे कर लिए। माना जा रहा है कि गठबंधन नहीं होने का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को हो सकता है।
अकाली दल को डर
अकाली दल के एक गुट ने बीजेपी से गठबंधन का विरोध किया। पार्टी नेताओं का मानना था कि किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी के रवैये के कारण सिक्ख जाट वोटर अकाली दल से किनारा कर सकते हैं। इस आशंका के कारण ही 2020 में अकाली दल एनडीए से अलग हुई थी। यह गुट बीजेपी को सिर्फ 3 सीट देने की मांग कर रहा था। 3 सीटों के प्रस्ताव को मानने से बीजेपी ने मना कर दिया। पार्टी में बगावत की आशंका से सुखबीर सिंह बादल ने भी समझौते से इनकार कर दिया। अकाली दल से फैसले से बीजेपी को झटका लगा। अब उसे सभी 13 सीटों पर जिताऊ कैंडिडेट की तलाश करनी होगी। बीजेपी के प्लान बी के मुताबिक, अब पार्टी कांग्रेस से बीजेपी में आए दिग्गजों के अलावा कई स्टार चेहरों पर दांव लगाएगी। कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पत्नी पटिलाया और प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ गुरदासपुर से मैदान में उतारे जाएंगे। बिट्टू पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू लुधियाना से बीजेपी कैंडिडेट होंगे।
1997 से 2019 तक साथ रहे बीजेपी-अकाली दल
बीजेपी पुराने जनसंघ के जमाने से अकाली दल की सहयोगी रही। 1967 में पहली बार जनसंघ और अकाली दल चुनाव के दौरान साथ में आए। फिर 30 साल बाद 1997 में दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया, जो 2019 तक सभी चुनावों में जारी रहा। 2017 में दोनों ने पहली बार मिलकर पंजाब में सरकार बनाी। 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अकाली गठबंधन ने बहुमत हासिल किया था। 1998 के लोकसभा चुनाव में भी अकाली दल ने 8 और बीजेपी ने 3 सीटों पर कब्जा किया। 1999 में दोनों साथ में ही चुनाव हारी। उस चुनाव में अकाली दल को सिर्फ दो और बीजेपी को एक सीट मिली थी। 2004 में दोनों पार्टियों ने मिलकर 11 सीटें जीत लीं। 2009 के बाद से गठबंधन लोकसभा चुनावों में गठबंधन का ग्राफ गिरता गया और दोनों दल पांच लोकसभा सीटों के आसपास सिमट गए। 2014 में अकाली दल को चार और बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली थी। 2019 में अकाली दल के खाते से एक सीट और कम हो गई।
किसान आंदोलन के दौरान टूटा था गठबंधन
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो-दो सीटों पर शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी ने कब्जा किया था, जबकि एक सीट आम आदमी पार्टी जीती थी। दोनों दलों के बीच किसान आंदोलन के बीच 2020 में गठबंधन खत्म हो गया था। अकाली दल किसान आंदोलन के समर्थन और कृषि कानून के विरोध में एनडीए से अलग हो गई थी। राजनीतिक अलगाव के बाद भी दोनों दलों के नेताओं ने एक-दूसरे के प्रति तल्खी नहीं दिखाई। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियां अलग-अलग नए दोस्तों के साथ चुनाव लड़ी। 117 सदस्यों वाली विधानसभा में अकाली दल को 3 और बीजेपी को सिर्फ दो सीटें मिलीं। अकाली दल को 18.38 प्रतिशत और बीजेपी को 6.6 प्रतिशत वोट मिले थे।
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