रिपोर्ट- सतीश चाण्डक, सुकमा। शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे कर रही है। इन दावों की हकीकत सुकमा जिले के अंदरूनी इलाकों स्थित स्कूलें बता रही है। कहीं चपरासी तो कहीं रसोईए के भरोसे पाठशाला चल रही है। गांवो में स्कूल भवन तो है लेकिन पिछले कुछ सालों से शिक्षक ही नहीं है। शिक्षकों के अभाव में स्कूल के बच्चे ही अपने साथियों को पढ़ा रहे हैं। शिक्षकों के नदारद रहने और ऐसी अव्यवस्थाओं की वजह से आदिवासियों का सरकारी शिक्षा के प्रति मोहभंग होने लगा है।
राष्ट्रीय राजमार्ग 30 से महज 6 किमी. दूर स्थित प्राथमिक शाला बड़े गुरबे गांव जहां कि स्कूल की स्थिति बहुत ही खराब है। इस पंचायत की जनसंख्या तकरीबन 1800 है। स्कूल में पिछले वर्ष करीब 40 बच्चे थे। लेकिन पिछले दो सालो से यहां शिक्षक नहीं है। पिछले सत्र में एक शिक्षक को अटैच किया गया था लेकिन वह भी कभी-कभार ही आता था। इस वर्ष उस शिक्षक को भी मूल पद पर वापस भेज दिया गया।
शिक्षक नहीं होने के कारण इस वर्ष महज 20 बच्चों ने प्रवेश लिया। ग्रामीणों ने कई बार शिकायत दर्ज करवाई लेकिन कभी भी कोई भी सुनवाई नहीं हुई। शिक्षक नहीं होने की वजह से कुछ बच्चे स्कूल आते तो हैं लेकिन वे भी मध्यान भोजन खाने के बाद वापस खेत चले जाते हैं। लल्लूराम डॉट कॉम को यह भी पता चला कि स्कूल के मरम्मत के नाम पर विभाग द्वारा 1 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी लेकिन जिम्मेदारों ने स्कूल का मरम्मत ही नहीं कराया और पैसे की बंदरबांट हो गई।
ऐसा ही कुछ हाल बोदारस पंचायत स्थित माध्यमिक शाला बूटापारा का भी है जहां पिछले तीन सालों सेशिक्षक नहीं है। लगता है सरकार स्कूल खोलकर शिक्षक भेजना भूल गई। वहा प्राथमिक व माघ्यमिक शाला के अलग-अलग भवन बने हुए है। रसोईया दुलाराम कवासी ने बताया कि प्राथमिक शाला में पदस्थ शिक्षक कभी-कभी इन बच्चो को पढ़ा लेते है। माध्यमिक शाला में पिछले साल 20 बच्चे थे। लेकिन इस साल 8 बच्चे अध्यनरत है।
जब एक छात्र ही अपने साथियों को पढ़ाते मिला
तीसरी कक्षा का छात्र बसंत पिता हुंगा जो अपने साथियों को पढ़ाता मिला। उसने बताया कि बहुत दिन हो गए गुरूजी को आए। उसने बताया कि वो और गांव से आए उसके साथी छोटे-छोटे बच्चों को पढाते हैं।