Lok Sabha Election 2024: रायपुर. पिछले वित्तमंत्रियों की तरह इस बार भी मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. सीतारमण के मुताबिक उनके पास न तो चुनाव लड़ने के लिए संसाधन है और न ही चुनाव जीतने की कला. उन्होंने आगे कहा कि यह सब मुझसे नहीं हो पाता, इसलिए मैंने इससे खुद को दूर कर लिया है.

हालांकि देश की राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं है. वर्ष 1984 के बाद एकाध अपवाद को छोड़ दिया जाए, तो कोई भी नेता वित्त मंत्री रहते या तो लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े या लड़े भी तो जीत नहीं पाए. इनमें यशवंत सिन्हा, मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और अरुण जेटली भी शामिल हैं. हालांकि 1980 से पहले सीडी देशमुख, कृष्णामाचारी, मोरारजी देसाई, यशवंतराव चव्हाण, हिरुभाई पटेल आदि ने वित्तमंत्री रहते चुनाव लड़ा था.

ये है अब तक का इतिहास (Lok Sabha Election 2024)

  • 1984 में आर वेंकेटरमण उपराष्ट्रपति बनने के कारण चुनाव में नहीं उतरे तो वहीं प्रणब मुखर्जी को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी में अलग- थलग पड़ गए थे.
  • राजीव गांधी सरकार में वित्त रहे शंकर राव चव्हाण ने भी 1989 में चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. तब उनके बेटे अशोक चव्हाण उतरे और हार गए.
  • 1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय सौंपा लेकिन उन्होंने भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और हमेशा राज्यसभा से आए.
  • वर्ष 1999 तक अटल बिहारी कैबिनेट में जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री रहे. जसवंत चुनाव नहीं लड़े, यशवंत सिन्हा हजारीबाग सीट से उतरे.
  • यूपीए सरकार में पी चिदंबरम वित्त मंत्री बने. मुंबई हमले के बाद मनमोहन ने खुद के पास ही वित्त विभाग रखा. 2009 के चुनाव में भी वे चुनाव नहीं लड़े.
  • मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे. 2014 में चिदंबरम ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया.
  • नरेंद्र मोदी सरकार अरुण जेटली, पीयूष गोयल और फिर सीतारमण वित्त मंत्री रही लेकिन तीनों वित्तमंत्री रहते लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा.

वित्त मंत्री क्यों नहीं लड़ते चुनाव ?

  • लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पैसे के साथ-साथ नेताओं के लिए समीकरण जरूरी है. इन दोनों में से अगर एक की कमी है, तो प्रत्याशी के लिए जीत मुश्किल हो सकती है.
  • चुनाव न लड़ने की एक दूसरी बड़ी वजह एंटी इनकंबैंसी का होना भी है. आम तौर पर हर चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा रहता है, जो सीधे तौर पर सरकार के वित्त विभाग से जुड़ा होता है.
  • सीएसडीएस के मुताबिक 2019 में 4 प्रतिशत लोगों ने महंगाई को तो 11 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा माना था. 2014 में 19 प्रतिशत लोगों के लिए महंगाई एक बड़ा मुद्दा रहा है.