उज्जैन , खंडवा, भोपाल। देश भर में चैत्र नवरात्रि की धूम है। आज नवरात्रि के साथ हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में हिंदू नव वर्ष और चैत्र नवरात्रि के अलावा मराठी समाज का गुड़ी पड़वा का पर्व भी आज है। इसी बीच अतिप्राचीन भवानी माता मंदिर पर विशेष पूजा अर्चना हुई। वहीं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हरसिद्धि माता मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी।
राजधानी भोपाल में चैत्र नवरात्रि को लेकर सुबह से ही मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है। इसी बीच आज मराठी समाज का गुड़ी पड़वा का पर्व भी है। मराठी समाज में गुड़ी पड़वा का काफी ज्यादा महत्व होता है। ऐसे में भोपाल के पिलानी के गणेश मंदिर में बड़े धूमधाम से यह पर्व मनाया गया।
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गणेश मंदिर के सचिव विनोद वीसे ने कहा, महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष के अवसर पर गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है और हर साल मराठा समाज द्वारा गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी लगाई जाती है। तो इस साल भी मराठी संस्कृतिक मंडल द्वारा राजधानी भोपाल के गणेश मंदिर में अब तक की सबसे ऊंची गुड़ी 31 फीट की हाइट पर लगाई गई है। यह विश्व की शांति के लिए और भारत को विश्व गुरु बनाने के संकेत के लिए लगाई गई है।
अतिप्राचीन भवानी माता मंदिर पर हुई विशेष पूजा
देशभर में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो चुकी है। माता मंदिरों में सुबह से ही दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। इसी तरह मध्य प्रदेश के खंडवा में स्थित अति प्राचीन तुलजा भवानी माता मंदिर पर भी आज चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन पर माता का विशेष श्रंगार कर उनकी पूजा-अर्चना की गई है।
मंदिर में दर्शनों के लिए सुबह से ही भक्तों की आवाजाही शुरू हो गई है। माता की भक्ति का यह सिलसिला आगामी 9 दिनों तक लगातार जारी रहेगा। बतादें कि, अति प्राचीन तुलजा भवानी माता मंदिर त्रेता युग का बताया जाता है, जहां वनवास काल के दौरान प्रभु श्री राम ने माता जानकी तथा भाई लक्ष्मण के साथ दर्शन किए थे।
हरसिद्धि माता मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़
आज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन है एवं रात्रि से ही नवदुर्गा माता मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी। यूं तो इसकी और भी कई विशेषताएं हैं, लेकिन एक खास बात जो लोगों के आकर्षण का केंद्र है, वो है मंदिर प्रांगण में स्थापित 2 दीप स्तंभ।
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ये दीप स्तंभ लगभग 51 फीट ऊंचे हैं। दोनों दीप स्तंभों में मिलाकर लगभग 1 हजार 11 दीपक हैं। मान्यता है कि इन दीप स्तंभों की स्थापना उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी। विक्रमादित्य का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है। इस दृष्टिकोण से ये दीप स्तंभ लगभग 2 हजार साल से अधिक पुराने हैं। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा विक्रमादित्य हर बारह साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन माता की कृपा से पुन: नया सिर मिल जाता था। बारहवीं बार जब उन्होंने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर वापस नहीं आया। इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया।
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