इमरान खान, खंडवा। भारत को यूं ही परंपराओं का देश नही कहा जाता है। निमाड़ के लोक आस्था के महापर्व गणगौर में 10 दिनों तक पूजन की समाप्ति के बाद होने वाले भंडारे में जूठे पत्तल उठाने के लिए बोली लगाने का सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है। भंडारों में भोजन के बाद अमूमन जूठे पत्तल उठाने से लोग कतराते हैं, लेकिन खंडवा में पिछले 100 से भी अधिक वर्षों से एक ऐसा आयोजन होता आ रहा है जहां जूठे पत्तल उठाने के बोली लगाई जाती है। आयोजन की व्यवस्था के मुताबिक जो व्यक्ति सबसे ज्यादा रुपए की बोली लगाता है उसी का परिवार उस पंगत के जूठे पत्तलें उठाता है। बताया जा रहा है कि जूठे पत्तल उठाने को यह लोग माता के आशीर्वाद के रूप में मानते हैं।

समाज के सोमनाथ काले और सुनील जैन ने बताया कि गणगौर पर्व के दौरान एक तरफ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है तो दूसरी और गणगौर माता को लोग विदाई दे रहे होते हैं। जैसे बेटी के मायके से ससुराल जाने का जो क्षण होता है। बेटी की गोद भराई होती है सब कुछ उसी रीति से गणगौर माता की भी आंचल भरकर विदाई की जाती है। रंजना परदेशी ने कहा कि भारत की मिट्टी और भारत की संस्कृति ऐसे ही तीज त्योहारो से भरी पड़ी है। जरूरत है ऐसी तीज त्यौहार और परंपराओं को सहेजने की, ताकि आने वाली पीढ़ी बरसों तक इस परंपरा को विरासत के रूप में अपनी सहेज सके।

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