एक दौर ऐसा भी! जब 62 लाख लोगों की कराई गई, जबरजस्ती  नसबंदी...

1975 में आपातकाल के दौरान लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी करा दी गई थी.

कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने 'उग्र' तरीके से इस अभियान को आगे बढ़ाया. इसमें सबसे ज्यादा निशाने पर गरीब आबादी रही.

इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी कभी प्रधानमंत्री पद पर नहीं बैठे, लेकिन फिर भी 1973 से 1977 के बीच उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर देश का कार्यभार संभाला था.

रिपोर्ट के अनुसार, एक साल के भीतर ही लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई. इस दौरान गलत ऑपरेशन से 2 हजार मासूम लोगों की मौत भी हुई.

वर्ल्ड बैंक ने 1972 से 1980 के बीच भारत सरकार को नसबंदी के लिए 6.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया.

पश्चिमी देशों की ओर से भारत की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए इंदिरा गांधी पर दबाव डाला गया था कि वो एक तेजी से नसबंदी कराए.

25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई. इसी दौरान इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का राजनीति में सक्रिय हुए.

असल में वह संजय गांधी ही थे जिन्होंने बड़े पैमाने पर देश में नसबंदी अभियान चलाने का मोर्चा संभाला.

नसबंदी के लिए सिर्फ जोर जबरदस्ती नहीं की गई बल्कि कई छुपे तरीकों से भी दबाव डाला जाता था.

सरकारी आदेश आए कि नसबंदी न करवाने वाले कर्मचारियों का प्रमोशन या वेतन नहीं बढ़ेगा.

कुछ मामलों में तो नसबंदी के बिना वेतन मिलना तक बंद हो गया था.

29 मार्च 1976 की एक रिपोर्ट की मानें तो लखनऊ में युवक कांग्रेस की रैली में संजय गांधी ने कहा था

युवाओं के लिए कांग्रेस के दरवाजे खुले हैं. बस उनके लिए एक शर्त है. उन्हें हर महीने कम से कम दो लोगों की नसबंदी करानी है.