दिल्ली. देश की निचली अदालतों के जज अक्सर विवादित फैसलों के चलते लोगों के निशाने पर आते रहते हैं. ऐसा ही एक विवादित फैसला असम की एक कोर्ट ने सुनाया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ पलट दिया बल्कि निचली अदालत पर बेहद कठोर टिप्पणी की

अपने पति की हत्या के मामले में असम की एक महिला को स्थानीय अदालत ने न केवल दोषी करार दिया बल्कि उम्र कैद की सजा भी सुनाई थी. अदालत ने ये आदेश इस बात को आधार मानकर दिया था क्योंकि महिला अपने पति की अप्राकृतिक मौत पर रोई नहीं थी. स्थानीय कोर्ट के फैसले को बाद में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी महिला की सजा को बरकरार रखा था.

पिछले करीब पांच साल से जेल की सजा काट रही महिला को अब सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान ने कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि महिला अपने पति की आकस्मिक मौत पर नहीं रोई तो वही उसकी हत्या की दोषी है. कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए महिला को बरी करने का आदेश सुनाया.

31 अक्टूबर को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य सबूतों से ये कतई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि इस महिला ने ही अपने पति की हत्या की थी. यही वजह है कि जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने तुरंत उम्रकैद की सजा काट रही महिला को बरी करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद महिला को बड़ी राहत मिली.

इससे पहले इस केस में असम की निचली अदालत ने महिला को दोषी करार देने के लिए इसी तर्क को मुख्य आधार माना था कि महिला अपने पति की आकस्मिक मौत पर रोई नहीं थी. कोर्ट ने कहा कि पति की मौत पर पत्नी का नहीं रोना बेहद चौंकाने वाला रवैया है, ये बिना किसी संदेह के महिला को दोषी साबित करता है.