PMLA: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) को लेकर एक बड़ा फैसला लेते हुए PMLA (Prevention of Money Laundering Act, 2002 ) में गिरफ्तारी से पहले ईडी (ED) को स्पेशल कोर्ट (Special Court) से अनुमति लेने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विशेष न्यायालय की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद ED धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 19 के तहत किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। अगर ईडी ऐसे आरोपियों की हिरासत चाहती है, तो उसे हिरासत के लिए संबंधित अदालत में आवेदन देना होगा। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि जब कोई आरोपी किसी समन के अनुपालन में अदालत के समक्ष पेश होता है, तो एजेंसी को उसकी हिरासत पाने के लिए संबंधित अदालत में आवेदन करना होगा।
वहीं इस फैसले के बाद कानूनविदों में चर्चा होने लगी है कि तो क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले ने ईडी की ताकत पर शिकंजा तो नहीं कस दिया है। आइए जानते हैं PMLA एक्ट क्या है? और समय के साथ कैसे कड़ा होता गया यह कानून।
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PMLA अधिनियम नियम क्या है?
धन शोधन निवारण अधिनियम कहें या प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट। यह ह एक आपराधिक कानून है जिसे धन शोधन को रोकने के लिए और धन शोधन से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की जब्ती का प्रावधान करने के लिए तथा उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के लिए 2002 में लाया गया था।
अटल की सरकार में लाया और मनमोहन की सरकार में हुआ लागू
पूर्व पीएम भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) सरकार के दौरान 2002 में बनाया गया पीएमएलए कानून मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) की यूपीए सरकार के दौरान जुलाई 2005 में लागू हुआ। पीएमएलए कानून के जिन प्रविधानों की चुभन विपक्षी नेताओं को रही है, उन्हें संशोधित कर धारदार बनाने का काम भी 2009 और 2012 में यूपीए सरकार के दौरान किया गया।
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अभी क्यों चर्चा में
हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) की गिरफ्तारी से कठोर पीएमएलए कानून ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग के विपक्ष दलों के आरोप का स्वर तेज हो गया है। सबसे अधिक निशाने पर ईडी और उसका पीएमएलए कानून है। विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने पीएमएलए को इतना कड़ा कानून सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया है। जबकि सच्चाई यह है कि अटल वाजपेयी सरकार के दौरान 2002 में बनाया गया पीएमएलए कानून मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान जुलाई 2005 में लागू हुआ था। पीएमएलए कानून के जिन प्रविधानों की चुभन विपक्षी नेताओं को रही है, उन्हें संशोधित कर धारदार बनाने का काम भी 2009 और 2012 में यूपीए सरकार के दौरान ही किया गया।
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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा थे सबसे पहला शिकार
पीएमएलए के कठोर कानून के पहले शिकार झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा (Madhu Koda) बने थे। अक्टूबर 2009 में ईडी ने पीएमएलए कानून के तहत मधु कोड़ा समेत उनके साथ कई मंत्रियों पर इसका शिकंजा कसा था। 2010 के बाद 2जी घोटाले और कोयला खनन घोटाले समेत तमाम घोटालों में आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का शिकंजा कसा। पीएमएलए कानून के तहत ए. राजा समेत तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने 2012 में संशोधन कर इसे और भी कड़ा बना दिया और इसके आयाम को और बड़ा कर दिया।
सुनवाई करते हुए पीठ ने दी ये दलीलें
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने पीएमएलए कानून (प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) को लेकर फैसला देते हुए कहा कि अगर धारा 44 के तहत शिकायत के आधार पर पीएमएलए की धारा 4 के तहत अपराध का संज्ञान लिया जा चुका है. तब ईडी और उसके अधिकारी शिकायत में आरोपी बनाए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए धारा 19 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
2012 में 28 तरह के जुर्म को कानून में शामिल किया गया
शुरूआत में इस कानून में आतंकी फंडिंग, तस्करी और वाइल्ड लाइफ से जुड़े मामले शामिल थे। 2005 में इसे लागू करने के बाद सभी बैंकिंग व वित्तीय संस्थाओं के लिए संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) को भेजना अनिवार्य कर दिया गया, ताकि बैंकिंग चैनल पर नजर रखा जा सके। 2009 में किये गए संसोधनों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून जैसे कई कानूनों को पीएमएलए के दायरे में ला दिया गया और ईडी को आरोपियों की संपत्ति को जब्त करने और उन्हें गिरफ्तार करने के अधिकार दिये गए। 2012 में 28 कानूनों के तहत दर्ज केस में ईडी को पीएमएलए के तहत जांच करने का अधिकार दे दिया गया, जबकि पहले सिर्फ छह कानूनों में ईडी को यह दिया गया था।
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