कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश में विधानसभा, लोकसभा चुनाव के बाद अब प्रदेश में सहकारिता चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस जहां सरकार पर सहकारिता आंदोलन को कुचलने का आरोप लगा रही है, तो बीजेपी जल्द सहकारिता के चुनाव कराने का दावा कर रही है। इन आरोपों और दावों पर राजनीति भी हो रही है।

सहकारिता के चुनाव को लेकर कांग्रेस अब बीजेपी पर हमलावर है। कांग्रेस का आरोप है कि पिछले लंबे समय में बीजेपी ने सहकारिता आंदोलन को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। अधिकांश सहकारी संस्थाएं कंगाली की हालत में है, जबकि कुछ सहकारी संस्थाएं बंद हो चुकी हैं। इसके अलावा लंबे अरसे से इन संस्थाओं के चुनाव नहीं हुए हैं।

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कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस सरकार में सहकारिता मंत्री रहे और पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह का कहना है कि प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को खत्म करने के लिए बीजेपी जिम्मेवार है। सहकारी संस्थाओं को कंगाली के मुहाने पर लाकर भाजपा नेताओं ने खड़ा कर दिया है। कई संस्थानों में डेढ़ से दो दशकों से चुनाव ही नहीं हुए हैं।

बीजेपी ने किया ये दावा

कांग्रेस के आरोपों के बीच भारतीय जनता पार्टी की सरकार में पूर्व सहकारिता मंत्री रहे अरविंद भदौरिया ने दावा किया है कि, आगामी तीन महीने के भीतर सहकारी संस्थाओं के चुनाव करा लिए जाएंगे। पहले अपेक्स संस्थाओं के चुनाव होंगे इसके बाद अपेक्स बैंक के चुनाव होंगे। बाद में जिला सहकारी बैंकों के चुनाव होंगे। इसके साथ ही अन्य सहकारी संस्थाओं के चुनाव कराए जाएंगे। पूर्व मंत्री अरविंद भदौरिया ने कहा कि सरकार ने इसके लिए रणनीति बना ली है और लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद अगले तीन महीनों में यह चुनाव कराए जाएंगे।

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बता दें कि, भारत सरकार द्वारा संविधान में 97 वां संशोधन विधेयक वर्ष 2012 में पारित करते हुए सहकारी संस्थाओं की प्रजातांत्रिक स्वरूप को कायम रखने का निर्णय लिया। जिसमें निर्वाचित संचालक मंडल को कार्यरत रखने पर जोर दिया गया बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो जाने पर तुरंत चुनाव कराने की नीति निर्धारित की गई। इसके साथ ही किसी भी हालत में संस्थाओं में प्रशासक 1 साल से अधिक ना रह पाए यह नियम भी निर्धारित किया गया। वहीं मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भी सहकारी अधिनियम में प्रशासक की अधिकतम नियुक्ति अवधि 2 वर्ष से अधिक नहीं रखी गई।

फिर भी संविधान और मध्य प्रदेश सहकारी सोसायटी अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत 18 वर्षों से अधिक समय से सहकारी संस्थाओं में शासकीय प्रतिनिधि प्रदत किया गया। और संस्थाओं की आर्थिक स्थिति भी जर्जर हो गई है। सरकार निर्वाचन नहीं करा रही जबकि सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी बोर्ड का गठन भी बीते 10 वर्षों से अधिक समय से किया जा चुका है।

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गौरतलब है कि, मध्यप्रदेश में 14 शीर्ष सहकारी संस्थाएं हैं। वही 4524 साख समितियां भी संचालित है, लेकिन इन सभी सहकारी संस्थाओं में लंबे अरसे से चुनाव ना होने के चलते इनका संचालन प्रभावित हुआ है। प्रशासक की नियुक्ति के बाद भी कई संस्थाएं घाटे में आ गई है, तो कई संस्थाएं आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसे सहकारिता चुनाव से सहकारी संस्थाओं को बढ़ी उम्मीद है।

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