वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ के चुनाव में कई दिलचस्प मिथक रहे हैं. इनमें से कुछ टूटे भी तो कुछ ऐसे भी हैं जो बीते तीन चुनाव में अभी तक नहीं टूटे हैं. यही वजह है कि इस मिथक को लेकर सबकी निगाहें उन सीटों पर विशेष रूप से रहती हैं जहां राजनीति के बड़े से बड़े दिग्गज चुनाव हारते रहे हैं. lalluram.com में ऐसे एक मिथक पर के बारे में हम आपको बता रहे हैं. जिसे शायद आप जानते भी होंगे लेकिन फिर भी उसे हर चुनाव में जानने की दिलचस्पी हर किसी की रहती है.
जिस मिथक की बात बता रहे हैं वह नेता-प्रतिपक्ष को लेकर है. छत्तीसगढ़ में हुए बीते तीन विधानसभा चुनाव में एक चौंकाने वाला परिणाम ये रहा है कि किसी भी चुनाव में कोई भी नेता-प्रतिपक्ष अब तक जीत नहीं पाया है. 2003 से लेकर 2013 तक राजनीतिक के तीन बड़े दिग्गज नेता ने नेता-प्रतिपक्ष रहते हुए चुनाव हारे हैं. फिर वह भाजपा के सबसे बड़े आदिवासी नेता नंदकुमार साय हो या फिर बस्तर टाइगर कहलाने वाले स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा हो. यही नहीं 2013 में लगातार चुनाव जीतने वाले रविन्द्र चौबे भी नेता-प्रतिपक्ष रहते हुए चुनाव हार गए थे.
2003 के चुनाव के वक्त कांग्रेस की सरकार थी. तब नेता विपक्ष थे भाजपा के दिग्गज नेता नंदकुमार साय. 2003 में विधानसभा चुनाव हुआ. परिणाम ये रहा कि सीएम अजीत जोगी से नेता-प्रतिपक्ष नंदकुमार साय को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. अजीत जोगी को 76 हजार 269 मत मिल थे, जबकि नंदकुमार साय को महज 22 हजार 119 मत ही प्राप्त हुए थे.
2008 में भाजपा की सरकार थी. तब कांग्रेस के दिग्गज नेता महेन्द्र कर्मा नेता विपक्ष थे. 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भी परिणाम 2003 की तरह ही रहा. भाजपा के युवा प्रत्याशी भीमा मंडावी ने महेन्द्र कर्मा को भारी मतो के अंतर से तो हराया ही उन्हें तीसरे नंबर पर भी धकेल दिया था. भीमा मंडावी को 36 हजार 813 वोट प्राप्त हुए थे, जबकि महेन्द्र कर्मा को सिर्फ 24 हजार 171 मत ही मिले थे.
2013 में भी भाजपा की सरकार थी. और इस बार नेता प्रतिपक्ष थे लगातार चुनाव जीतने वाले दिग्गज नेता रविन्द्र चौबे. किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी जिस साजा सीट से कांग्रेस कभी हारी ही नहीं वहां से लगातार चुनाव जीतने वाले रविन्द्र चौबे भी चुनाव हार सकते हैं. लेकिन नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हारने वाला मिथक यहां भी कामय रहा. भाजपा के नए नवेले और साजा के स्थानीय प्रत्याशी नहीं होने के बाद भी लाभचंद बाफना से रविनद्र चौबे चुनाव हार गए. लाभचंद बाफना को 81 हजार 707 मत मिले थे, जबकि रविन्द्र चौबे को 72 हजार 707 वोट प्राप्त हुए थे.
इस तरह से तीन चुनाव में नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हारने का मिथक अब तक कायम रहा है. लिहाजा अब सभी की निगाहें 2018 के इस चुनाव में अंबिकापुर सीट पर है. जहां दो बार से विधायक और नेता-प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव चुनाव मैदान में है. सिंहदेव के खिलाफ लगातार दो बार से चुनाव हार भाजपा प्रत्याशी अनुराग सिंह मैदान में है. तो सवाल ये है कि बीते तीन चुनाव से नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हारने का मिथक क्या टीएस सिंहदेव तोड़ पाएंगे या फिर से यह मिथक कायम रहेगा? इंतजार 11 दिसंबर को आने वाले परिणाम का है.