अनिल सक्सेना, रायसेन। अजब एमपी में आबकारी विभाग के गजब कारनामे हर दिन सामने आ रहे हैं. ताजा मामला रायसेन जिले से सामने आया है. जहां एक आदिवासी शिक्षक 9 साल से आबकारी इंस्पेक्टर की गई बदसलूकी के खिलाफ न्याय के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहा है. सरकार आदिवासियों के हित के लिए तमाम कानून बनाकर उनके साथ खड़े होने का लाख दावा कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
दरअसल, जिले के गौहरगंज थाना क्षेत्र के ग्राम बिनेका में शराब ठेकेदार के इशारे पर तत्कालीन आबकारी इंस्पेक्टर विवेक त्रिपाठी ने बिना विभाग की परमीशन लिए अपने कार्यक्षेत्र से अलग जाकर शिक्षक के घर छापा मारा. बीमार हालात में घर पर अपने बच्चों के साथ रह रहे आदिवासी शिक्षक पप्पू बरखड़े के साथ गाली गलौज और जमकर मारपीट की. साथ ही उसे आबकारी के दफ्तर उठा ले गए. जहां उसके साथ फिर और मारपीट की गई. तभी से गोंड आदिवासी शिक्षक अपने सम्मान के लिए सभी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है. घटना की शिकायत उसने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181 पर भी कर सीएम मोहन यादव से न्याय की गुहार लगाई है.
आबकारी इंस्पेक्टर विवेक त्रिपाठी वर्तमान में धार जिले में पदस्थ हैं. अब भी अपने रसूख के कारण रुपयों के दम पर शिक्षक की शिकायत को दबा देते हैं. जिस कारण 9 साल बाद अब तक थाने, कलेक्टर और एसपी से शिकायत करने के बाद भी उसकी रिपोर्ट पुलिस ने नहीं लिखी गई. पीड़ित शिक्षक के परिवार पर लगातार दबाव बनाकर धमका कर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है.
पीड़ित वर्तमान में प्राथमिक शाला कामतौन कांसिया में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ हैं. उनके साथ 9 साल पहले आबकारी इंस्पेक्टर विवेक त्रिपाठी की हैवानियत को याद कर आज भी उनका परिवार सहम जाता है. उन्होंने सभी जगह कई आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई है. आवेदन में शिक्षक ने बताया कि 5 जुलाई 2015 को ग्राम विनेका में प्रेमनारायण नंदवंशी के मकान में किराये पर रहता हूं. मेरी कुछ महीनों से तबियत खराब होने के कारण अपने कमरे में सो रहा था. तभी आबकारी विभाग के इंस्पेक्टर विवेक त्रिपाठी ने अचानक छापामारी की. मुझे दूसरे कमरे से बुलाकर पूछताछ करने लगे. जबाव में मैनें उनसे कहा कि मेरी तबियत खराब होने की वजह से यहां नहीं रहता हूं. आज ही भोपाल से इलाज कराकर आया हूं.
इतने में विवेक त्रिपाठी ने मुझे गंदी गालियों देने लगे और मारपीट कर घसीटते हुए जबरदस्ती ओबेदुल्लागंज ले गए. मैंने कपड़े भी नहीं पहने थे. मैंने काफी निवेदन कपड़े पहने का किया, लेकिन नहीं पहनने दिए। उसी हालत में मुझे ओबैदुल्लागंज लाए. वहां ले जाकर उन्होंने मुझे जेल में डालने की धमकी देते हुए जबरदस्ती गवाही हस्ताक्षर करवाए। जिसके बाद से मेरा शारीरिक और मानसिक संतुलन खराब होता जा रहा है. बच्चे और समाज के लोग मुझे अपराधी दृष्टि से देखते हैं. जिसके बाद समाज और स्कूल में भी प्रतिष्ठा खराब हो गई है. इस संबंध में सीएम हेल्पलाइन से लेकर जगह-जगह सरकारी दफ्तरों में आवेदन देकर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की. लेकिन आज तक न्याय नहीं मिला। अब देखना होगा कि आदिवासी शिक्षक को न्याय मिलता है या नहीं, या फिर पीड़ित ऐसे ही दफ्तरों के चक्कर कटाते रहेगा.
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