Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

सुनहरी कलम

एक अफसर की टेबल पर रखी सुनहरी कलम और एक पर्ची की चर्चा पूरे महकमे में गूंज रही है. पर्ची पर इस्तीफे की उस कसम का जिक्र है, जो अफसर ने खाई थी. अफसर महकमे के सबसे बड़े ओहदे पर काबिज होने के हकदार थे. मगर उनकी सीनियरिटी को दरकिनार कर उनके जूनियर की ताजपोशी कर दी गई थी. शिकवे शिकायतों पर उन्होंने खूब स्याही खर्च की. जगह-जगह चिट्ठी लिखी. कोर्ट कचहरी की. दस्तावेज खंगाले. दिगर राज्यों की व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन किया. मगर हासिल कुछ न आया. बड़ी उम्मीद से थे कि उनकी लड़ाई उन्हें उनका हक दिलाएगी. कलम की स्याही खर्च करते-करते सरकार बदल गई. सूबे में कमल खिल गया. खिले हुए कमल ने उन्हें ढांढस बंधाया. महकमे के सबसे बड़े ओहदे पर काबिज होने के उनके सुनहरे सपने ने फिर से अंगड़ाई ली. नई-नई स्फूर्ति और जोश के बीच ही उन्होंने कसम खा ली. कह बैठे- जूनियर को हटा नहीं पाने पर वह खुद इस्तीफा दे देंगे. कमल खिले सात महीने बीत गए. उसकी खुशबू उन तक पहुंच न पाई. पहुंची तो एक सुनहरी कलम और एक पर्ची, जिसमें उनकी कसम का जिक्र है. पहले से परेशान अफसर इस बात पर हैरान है कि जख्म पर भला इस तरह से नमक कौन छिड़क रहा है?

सीबीआई जांच

किसी घपले घोटाले की इनवेस्टिगेशन में सबूत बड़ी चीज होती है. राज्य में शराब घोटाला हुआ. ईडी मनी ट्रेल ढूंढती रही. डिजिटल साक्ष्य के इर्द गिर्द जांच चलती रही. आईजी अमरेश मिश्र की अगुवाई वाली एसीबी ने जैसे ही जांच पकड़ी, जमीन सबूत उगलने लगे. शराब घोटाले के मुख्य किरदारों में एक किरदार रहे अनवर ढेबर की जमीन पर पिछले दिनों जेसीबी उतरी, तो छह फीट नीचे दबा नकली होलोग्राम भी बाहर निकल आया. इधर एसीबी जमीन खोद-खोद कर सबूत निकाल रही है, उधर दिल्ली में सीबीआई, घोटाले के दूसरे किरदार ए पी त्रिपाठी की नींव खोदने की तैयारी में जुट गई है. चर्चा है कि डिपार्टमेंट आफ टेलिकम्युनिकेश (डीओटी) के उच्च पदस्थ एक अफसर की चिट्ठी पर सीबीआई ने ए पी त्रिपाठी के खिलाफ जांच शुरू की है. चूंकि त्रिपाठी छत्तीसगढ़ सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे, सो सीबीआई ने राज्य सरकार से इसकी अनुमति मांगी है. खबर है कि सरकार ने सीबीआई को जांच की अनुमति दे दी है. ईडी, एसीबी-ईओडब्ल्यू के बाद अब ए पी त्रिपाठी सीबीआई की रडार पर है. पूर्ववर्ती सरकार में चंद लोगों के पास असीमित ताकत थी. असीमित ताकत व्यक्ति को अहंकारी बना देती है. अहंकार समझ खत्म कर देता है. चौरसिया, टुटेजा, साहू, विश्नोई, त्रिपाठी, ढेबर सरीखे कई लोग थे. अहंकार में चूर. सींखचों के उस पार जा पहुंचे. असीमित ताकत थी, सही गलत का भेद कर पाने में चूक कर बैठे. नई सरकार में भी कुछ हैं, जो अहंकार की पगडंडी पर दौड़ रहे हैं. पगडंडी पर दौड़ना आसान नहीं होता. संतुलन बिगड़ सकता है. समय रहते संभल जाना बेहतर होगा.

ओटीपी विधायक

भाजपा के कई विधायक हैं, जिन्हें वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी कहा जा रहा है. ये विधायक अपने इलाकों में खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. सरगुजा से बस्तर तक झांक आइए इन विधायकों के कारनामे हिलाकर रख देंगे. विधायकों के भाई-भतीजे-भांजे यहां तक कि साले भी अपने आप में विधायक से कम रुतबा नहीं रखते. ये सट्टा प्रतिनिधि, शराब भट्टी प्रतिनिधि, अवैध रेत खनन प्रतिनिधि, ट्रांसफर-पोस्टिंग प्रतिनिधि, ठेकेदार प्रतिनिधि, फैक्ट्री उगाही प्रतिनिधि, जमीन कब्जा प्रतिनिधि समेत कई किस्म के प्रतिनिधि बनकर उभर रहे हैं. क्या ही किया जा सकता है. पूछो तो कहते हैं कि राजनीति यही है. खैर, सत्ता पक्ष के 54 में से करीब 20 विधायक ऐसे हैं, जो कभी मेनस्ट्रीम पाॅलिटिक्स का हिस्सा नहीं रहे. पार्टी की बैठकों में दरी नहीं बिछाई, झंडा पकड़कर नारे नहीं लगाए, इनके लिए आंदोलन-प्रदर्शन न जाने किस बला का नाम है. चुनाव में लाटरी निकली. टिकट मिल गई. नेता बन गए. पार्टी ने कार्यकर्ताओं पर इन नेताओं को थोप दिया. अब यही नेता सरकार की छाती पर मूंग दल रहे हैं. सत्तापक्ष के विधायक अपने इलाकों में सरकार का चेहरा होते हैं. विधायकों से नाराजगी, दरअसल सरकार से नाराजगी होती है.

मंत्रियों का शपथ!

साय मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा कहीं जाकर अटक गई है. सीएम जब दिल्ली उड़े थे, तब सुगबुगाहट तेज हो गई थी. भीतरखाने से तरह-तरह की चर्चा छनकर बाहर आ रही है. ऐसी ही एक चर्चा कहती है कि साय सरकार में पांच मंत्री शपथ ले सकते हैं. तीन मंत्रियों का इस्तीफा कराकर इनकी जगह नए मंत्री लाए जा सकते हैं. दो मंत्री पद रिक्त है ही. कहते हैं कि बात सरकार और संगठन के बीच कहीं अटकी है. संगठन, मंत्रियों को हटाने के पक्ष में नहीं है. इस वजह से बात बन नहीं पा रही. इधर विधानसभा का मानसून सत्र करीब है. सदन में फ्लोर मैनेजमेंट करने की बड़ी भूमिका संसदीय कार्य मंत्री की होती है. ऐसे में एक चर्चा यह भी है कि शपथग्रहण नहीं होने की स्थिति में संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी डिप्टी सीएम अरुण साव को सौंपी जा सकती है. साव सांसद रह चुके हैं. विधि-विधायी विभाग के मंत्री हैं. प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. जहां नियम कानून की बात होगी, वहां अपने तर्कों पर और जहां सियासी मुद्दे होंगे, वहां अपने सियासी कौशल से सदन को साध सकते हैं.

एसीबी का हंटर

एंटी करप्शन ब्यूरो अपने फुल फार्म में है. पहले सरगुजा में एसडीएम, फिर रायपुर में महिला थाना प्रभारी और इसके बाद धमतरी में नायब तहसीलदार रंगे हाथों धर लिए गए. एसीबी का इकबाल लौट आया है. ऐसे छापे पड़ते रहने चाहिए. भ्रष्टाचार पर लगाम लगा रहता है. खत्म हो जाने की कल्पना करना बेमानी होगी. राजस्व, पुलिस जैसे विभागों से आम जनता रोजाना दो चार होती है. यहां होने वाले भ्रष्टाचार का सीधा असर सरकार की साख से जुड़ा होता है. रिकार्ड दुरुस्त करने के नाम पर पटवारी के हिस्से 20-25 हजार रुपए , तो सरकार के हिस्से गाली आती है. पटवारी यही कहता है कि वसूली का बड़ा हिस्सा सरकार में बैठे लोगों तक पहुंचाना होता है. एफआईआर दर्ज करने की ऐवज में जब रुपयों की मांग होती है, तब भी सरकार की ओर एक गाली उछाली जाती है. कहने का मतलब यह है कि जनता से सीधे जुड़े विभागों में एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई झूठा ही सही मगर यह भरोसा तो जगाती ही है कि कुछ लोग हैं, जो नाकारा सिस्टम पर अपना हंटर चलाकर जगाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.

राजनीति में एक और अफसर !

केंद्रीय सेवाओं से छत्तीसगढ़ में प्रतिनियुक्ति का ज़िक्र आता है तो ए पी त्रिपाठी, मनोज सोनी जैसे अफसर चर्चा में आ जाते हैं. दोनों अफसर किस्म-किस्म के घोटाले में सुर्खियाँ में छाये रहे. इसी सेवा से आने वाले 2009 बैच के अफसर पोषण चंद्रकार की प्रतिनियुक्ति हाल ही में ख़त्म हुई है. मगर ब्यूरोक्रेसी में रहते हुए भी पोषण चंद्राकर की साख पर बट्टा लगने की खबर नहीं सुनी गई. पोषण चन्द्रकार ठेठ छत्तीसगढ़ियाँ अफसर हैं. अब तक बीते 15 साल की सर्विस में ज्यादातर वक़्त छत्तीसगढ़ में बीता. पहले भारत सरकार के अधीन रहते हुए राज्य में डिप्टी कमिश्नर, जॉइंट कमिश्नर रहे. फिर प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ सरकार में सेवा देते हुए कृषि, शिक्षा जैसे विभागों में संयुक्त सचिव,बीजापुर और नारायणपुर जिले में ज़िला पंचायत सीईओ और बाद में महिला बाल विकास के साथ समाज कल्याण विभाग के विशेष सचिव की जिम्मेदारी सँभाली. साय सरकार ने उन्हें बीज निगम का एमडी बनाया था. प्रतिनियुक्ति के सात साल बीतने पर राज्य सरकार ने उनकी सेवाएँ केंद्र को लौटा दी है. खबर है कि पोषण चंद्राकर जल्द ही नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीतिक पारी शुरू कर सकते हैं. ऐसा हुआ तो ओ पी चौधरी के बाद एक और ठेठ छत्तीसगढ़ियां राजनीति में दिखाई पड़ सकते हैं. वैसे राजनीतिक गलियारों में उनके नाम की चर्चा पहले भी सुनी जाती रही है.