नईदिल्ली. अखिल भारतीय किसान सभा सहित देश के 200 से अधिक संगठनों से बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर आयोजित किसान मुक्ति मार्च में छत्तीसगढ़ से भी 500 से अधिक किसान हिस्सेदारी कर रहे हैं. इन किसानों का नेतृत्व छत्तीसगढ़ किसान सभा के राकेश चौहान, राजनांदगांव जिला किसान संघ के सुदेश टीकम तथा छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर-किसान कार्यकर्ता समिति) के रमाकांत बंजारे कर रहे हैं.

 

छग किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि स्वामीनाथन आयोग के C2 फार्मूले के अनुसार फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और इसके लिए कानून बनाने, किसानों को उन पर चढ़े सरकारी और महाजनी कर्जे से मुक्त करने के लिए कानून बनाने, पशुओं के व्यापार पर लगे अघोषित प्रतिबंध को हटाने और उन पर गौ-गुंडों के हो रहे हमलों पर रोक लगाने, फसल बीमा के तहत प्राकृतिक आपदा से हो रहे नुकसान का आकलन व्यक्तिगत आधार पर करने, विकास के नाम पर किसानों की जबरन भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाने तथा पेसा, वनाधिकार कानून व पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का पालन करने, मनरेगा में 200 दिन का काम हर परिवार के लिए सुनिश्चित करने आदि इन मार्च की प्रमुख मांगें हैं. किसान मुक्ति मार्च में शामिल संगठन किसानों की मांगों और खेती किसानी के समस्याओं पर विचार-विमर्श करने के लिए संसद का 21 दिनों का विशेष सत्र भी बुलाने की मांग कर रहे हैं.

मोदी पर लगाया वादाखिलाफी का आऱोप

यह किसान संगठन दिल्ली के बाहर के चारों राजमार्गों से लांग मार्च कर रहे हैं, जो 30-35 किलोमीटर की दूरी तय कर आज रात को रामलीला मैदान पहुंच रहे हैं. कल इन सभी संगठनों के हजारों किसान संसद का घेराव करेंगे और अपनी मांगों को प्रमुखता से उठाएंगे. संसद के घेराव के लिए किसान जत्थों का आज रात तक आना जारी रहेगा. गुप्ता ने मोदी सरकार पर किसानों से किए गए वायदों से करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि चुनाव पूर्व किसानों को बेहतर जीवन देने का वादा किया गया था, लेकिन मोदी राज में किसान आत्महत्याएं 2013-14 की तुलना में डेढ़ गुना बढ़ गई है. किसानों से जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को छीनकर कारपोरेट घरानों को सौंपने की प्रक्रिया तेज हो गई है. इससे किसान भूमिहीन मजदूर में बदल रहा है.

डब्ल्यूडीओ की शर्तों को लागू कर रही है सरकार

उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिका के नियंत्रण में विश्व व्यापार संगठन की जिन शर्तों को मोदी सरकार देश में लागू कर रही है, वह किसानों की बर्बादी का रास्ता है. इससे हमारे देश के घरेलू बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा होता जा रहा है और देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता खत्म होती जा रही है. खाद्यान्न निर्यातक देश से भारत खाद्यान्न आयातक देश में बदल रहा है और दाल और चीनी के लिए भी हम विदेशों के मोहताज हो गए हैं. यह किसान मुक्ति मार्च सरकार से किसानों और खेती-किसानी को बर्बाद करने वाली नीतियों को पलटने की मांग कर रहा है.