आरिफ कुरैशी, श्योपुर। मध्य प्रदेश में लंबे अरसे से बाढ़ के हालातों का सामना कर रहा श्योपुर जिले का सुंड़ी गांव इस साल फिर से पार्वती नदी में उफान आते ही टापू बन गया है। चारों तरफ पार्वती नदी का पानी है और टापू पर बसे इस गांव में बच्चे, महिलाओं सहित 300 से ज्यादा परिवार फंस गए हैं। प्रशासन के अधिकारी ग्रामीणों को गांव खाली करने के लिए समझाइश दे रहे हैं लेकिन, उनके सामने समस्या यह है कि, वह छोटे-छोटे बच्चे, महिलाओं और अपनी मवेशियों को लेकर जाएं तो आखिर कहां जाएं।
अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने गांव में ही ये लोग डटे हुए हैं। दिन-रात भगवान का भजन करके यही गुहार लगा रहे हैं कि, इस बार नदी ज्यादा उफान पर नहीं आए और प्रशासन उन्हें दूसरी जगह पर विस्थापित करे ताकि, उनकी यह समस्या हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो सके। इसी को लेकर लल्लूराम डॉट कॉम की टीम यहां पहुंची और हालातों का जायजा लिया।
मामला जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर बसे अड़बाड़ ग्राम पंचायत के सुंड़ी गांव का है। जहां ये गांव पार्वती नदी के बीचों-बीच एक विशाल टापू पर बसा है। ग्रामीणों के घर-मकान से लेकर उनकी जमीन भी इसी टापू पर है लेकिन गांव पार्वती नदी से चारों ओर से घिरा होने के कारण बारिश के सीजन में उनकी जिंदगियां संकट में आ जाती हैं। नदी में घड़ियाल-मगरमच्छ भी भारी संख्या में हैं। इस वजह से नदी के अलावा ग्रामीणों को उनका खतरा भी रहता है।
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जब उफनती हुई पार्वती नदी से घिरे इस गांव में पहुंचकर हालात देखे तो नदी पार करते ही गांव के रास्तों पर कीचड ही कीचड़ मिला। यह कीचड़ पूरे गांव में पसरा हुआ है। इस वजह से ग्रामीणों को नदी के साथ इस समस्या का सामना भी रोजाना करना पड़ता है। गांव में कच्चे-पक्के मकानों के अलावा घास-फूंस की टापरी भी बनी हुई थीं। ज्यादातर घरों की दीवारों में दरारें थीं, कई लोग तो मवेशियों के बांधने बाली जगह पर मवेशियों के साथ रह रहे थे।
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भजन-कीर्तन कर भगवान से करते हैं प्राथना
पूरे गांव में ऐसा कोई नहीं था जो नदी के उफान से डर नहीं रहा हो क्योंकि, वह कई बार बाढ़ और मौत को नजदीक से देख चुके हैं। इसलिए ज्यादातर लोग गांव के सबसे उंचे स्थान पर बने ठाकुरजी महाराज के मंदिर पर ही शरण लिए हुए हैं। दिन-रात भगवान का भजन-कीर्तन करते हैं और उन्हीं से बिनती भी करते हैं कि, प्रभु गांव में किसी को जान-माल का नुकसान नहीं हो।
5 पार मौत को करीब से देखा
गांव के 75 वर्षिय हरिलाल बताते हैं कि, 75 साल की उम्र हो गई है, हर साल बाढ़ के हालातों से जूझते हैं। 5 बार तो मौत को बेहद नजदीक से देखा है, नदी के पानी ने पूरे गांव को डुबा दिया। सिर्फ मंदिर ही था जो नहीं डूबा। पूरे गांव के लोगों ने मंदिर पर शरण ली। भगवान की कृपा से ही हमलोग बच सके, यहां कोई व्यवस्था नहीं है। प्रशासन की वोट भी तब आती है जब पानी उत जाता है, हम विस्थापन चाहते हैं, हमारे गांव को यहां से विस्थापित किया जाए।
प्रशासन कब विस्थापित करेगा?
सुंड़ी गांव में अकेले हरिलाल गुर्जर ही नहीं थे जो विस्थापन चाहते थे बल्कि, गांव के बच्चे-बच्चे के मुंह पर एक ही बात थी कि, प्रशासन कब विस्थापित करेगा। कई महिलाएं तो सिस्टम से इतनी ज्यादा नाराज थीं कि, वह यहां तक कहने लगीं कि, अधिकारी अगर हमें विस्थापित नहीं कर सकते तो हमें मना कर दें, डर-डर कर मरने से अच्छा है हम नदी में कूदजाएं। महिलाओं का यह दुख, दर्द है क्योंकि, गांव में उन्हें 24 घंटे बाढ़ का डर सताता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्या से परेशान
बारिश शुरु होते ही उन्हें ऐसा लगता है कि, नदी में उफान आएगा और सब तबाह हो जाएगा। ग्रामीणों की मानें तो नदी की बाढ़ हर साल गांव और खेतों की मिट्टी को बहाकर ले जाती है, इससे उनके खेत नदी के लेवल में पहुंचते जा रहे हैं। बाढ़ के अलावा गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्या भी है क्योंकि, सुंड़ी में 5वीं तक स्कूल है, स्कूल में 2 टीचर पदस्थ हैं जो नदी के उफान पर आते ही बंद हो जाते हैं। क्योंकि, टीचर वाहर से आते-जाते हैं, आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को गांव से वाहर जाना होता है लेकिन, नदी रास्ता रोक लेती है। इस वजह से ज्यादातर बच्चे या तो आगे की पढ़ाई ही नहीं करते और जो करते हैं वह दूसरे शहरों में रिस्तेदारों के यहां रहकर पढ़ते हैं। ऐसे में बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है।
बारिश के सीजन में ग्रामीणों को हर तरह की समस्या है। कोई बीमार हो जाए तो कीचड़ से सने रास्तों को पार करके नदी पार करना मुश्किल हो जाता है। इस बीच गंभीर मरीज दम भी तोड़ देते हैं, रोजमर्रा की जरुरत के सामान सब्जी-भाजी, राशन आदि के लिए भी ग्रामीणों को परेशान होना पड़ता है, ग्रामीणों का आरोप है कि, प्रशासन की वोट तो कभी कवार आती है, उनकी जो 2 नाव थीं, वह पानी में डूब गई हैं, इन हालातों में पूरे गांव के ग्रामीणों को राशन के बिना रुखा-सूखा भोजन खाकर जिंदा रहना पड़ता है, दवा के बिना मरीज गांव में ही दम तोड़ देते हैं और प्रसूताओं को 2-2 महीने पहले गांव से रिस्तेदारों के यहां भेजना पड़ता है। उनकी एक ही मांग है कि, उन्हें दूसरी जगह विस्थापित किया जाए।
सुंड़ी गांव के हालात बांकई में खराब हैं, जिसे विस्थापित करने के प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल चुकी है और बारिश शुरु होने से पहले प्रशासन ने अड़वाड़ गांव के पास ग्रामीणों को विस्थापित करने के लिए प्रयास भी किए लेकिन, जिस जगह का चुनाव किया गया उस सरकारी जमीन पर किसान पहले से ही खेती करते चले आ रहे हैं, इस वजह से उन्होंने पुलिस और प्रशासन को उक्त जमीन को खाली नहीं कराने दिया था। इस वजह से ग्रामीणों को विस्थापित नहीं किया जा सका। अब ग्रामीणों को वर्षों पुरानी बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
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