नई दिल्ली. क्राइम ब्रांच की गिरफ्त में आए अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट के आरोपियों से पूछताछ में बड़ा खुलासा हुआ है. पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपियों ने बताया है कि नौकरी के नाम पर लोगों को बांग्लादेश से भारत लाया जाता था और फिर दबाव बनाकर किडनी का सौदा कर लिया जाता था.
इसी क्रम में बांग्लादेश से दिल्ली आने के बाद करीब 12 लोग ट्रांसप्लांट के लिए तैयार नहीं हुए और वापस बांग्लादेश लौट गए थे. अलग-अलग मामलों में इन्होंने किडनी देने से मना कर दिया था. DCP (क्राइम ब्रांच) अमित गोयल ने बताया कि आरोपियों से पूछताछ के दौरान जो जानकारी सामने आ रही है, उसकी सत्यता की जांच की जा रही है.
साल भर में 2-3 मामले : आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए तैयार नहीं होने वाले लोग साल में 2-3 ही होते थे. इसका कारण यह था कि ये किडनी देने के नाम पर डर जाते थे और कोई काम दिलाने की बात करने लगते थे.
आरोपियों से पूछताछ में पता चला है कि इन्होंने बांग्लादेश में करीब 50 लोगों से संपर्क किया, लेकिन इसमें से कुछ तो ट्रांसप्लांट के लिए तैयार नहीं हुए और कुछ नौकरी के नाम पर भी आने को तैयार नहीं हुए. इसमें ज्यादातर लोग ऐसे थे, जो बेरोजगार थे और उन्हें पैसों की जरूरत थी.
इस पर टिकी पुलिस की जांच
यह गिरोह पिछले 5 साल से काम कर रहा है. पुलिस को शक है कि इन्होंने अबतक 3 दर्जन से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट किए होंगे. इन्होंने दिल्ली के जसोला गांव में किराए पर फ्लैट ले रखा था. किराए के फ्लैट में 5-6 डोनर रह रहे थे. इस फ्लैट पर ही डोनर और रिसीवर दोनों पक्षों की आपस में मुलाकात भी कराई जाती थी.
अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट से जुड़े बांग्लादेशी नागरिक इफ्ती को पुलिस की होने वाली कार्रवाई के बारे में एक सप्ताह पहले ही भनक लग गई थी. इस कारण वह गिरोह के अन्य गुर्गे को त्योहार मनाने की बात कह बांग्लादेश भाग गया. वह दिल्ली के जसोला स्थित फ्लैट में रहता था. इफ्ती गिरोह के सरगना रसेल को डोनर मुहैया कराता था.
बांग्लादेश जाने के बाद नहीं किया संपर्क : बांग्लादेश जाने के बाद इफ्ती ने किसी से संपर्क नहीं किया है, जबकि वह तकरीबन हर 2-3 महीने पर डोनर और मरीज को लेकर दिल्ली आता था. साथ ही इसके लिए लगातार गिरोह के संपर्क में भी रहता था. इस आधार पर यह आशंका जताई जा रही है कि उसे छापेमारी की भनक लग गई होगी. इस कारण वह कार्रवाई से बचने के लिए पहले ही फरार हो गया.
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