जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर जारी अटकलों के बीच गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन किया है. इसके साथ ही अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों, पुलिस के तबादलों और पोस्टिंग के साथ-साथ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के मामलों में उपराज्यपाल को अधिक अधिकार मिल गए हैं.

केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी की गई. अधिसूचना में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को IAS और IPS जैसे अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग, पुलिस, कानून और व्यवस्था के साथ-साथ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति के मामलों में अधिक अधिकार मिलेंगे.

मुख्य नियमों में नियम 42 के बाद 42ए जोड़ा गया है, जिससे उपराज्यपाल को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बने राज्य के लिए महाधिवक्ता और विधि अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार मिल गया है. 42बी यह भी स्पष्ट करता है कि अभियोजन स्वीकृति देने या अस्वीकार करने या अपील दायर करने के प्रस्ताव भी एलजी द्वारा ही दिए जाएंगे.

संशोधन के खिलाफ सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टैंप CM से बेहतर के हकदार हैं. उन्होंने कहा कि संशोधन एक संकेत है कि चुनाव नजदीक हैं.

उन्होंने लिखा, “एक और संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक हैं. यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता इन चुनावों के लिए एक शर्त है. जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टैंप सीएम से बेहतर के हकदार हैं. उन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी LG से भीख मांगनी पड़ेगी.”

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर की समयसीमा तय की है.