आकाश श्रीवास्तव, नीमच। भारत की आजादी को 70 दशक से अधिक का समय बीत चुका है। वैज्ञानिकों ने चांद और मंगल ग्रह पर जाने का रास्ता तो आसान कर लिया है। मगर देश के कुछ इलाकों में आज भी लोगों की अंतिम यात्रा का रास्ता सुगम नही हुआ है। ग्रामीणो को दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ रहा है। हद तो तब हो जाती है जब मौत के बाद भी अंतिम यात्रा का रास्ता कीचड़, बहते बरसाती नालों से भरा हो, और जान जोखिम में डालकर गुजरना पड़ता हो।

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नीमच जिले के रामपुरा तहसील का गांव बड़ोदिया बुजुर्ग इन्ही हालातों की बानगी पेश कर रहा है। जहां दशकों बीत जाने पर भी ग्रामीणो को शवयात्रा कीचड़ भरे दुर्गम मार्ग से बरसाती नाले के बहते पानी से होकर निकालना पड़ रहा है। नाले में तेज बहाव है, तो उसे पार करना खतरे से खाली नही होता। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए घण्टो इंतजार करना पड़ता है।

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दरअसल गांव में किशन लाल गुर्जर नामक  80 वर्षीय बुजुर्ग का निधन मौत हो गया था। मौत दोपहर को हुई, मगर अंतिम संस्कार शाम को करना पड़ा। क्योंकि शमशान के रास्ते मे आने वाले नाले कुछ देर पहले हुई बारिश से बहाव तेज था। जब पानी उतरा, तब शवयात्रा निकली और अंतिम संस्कार किया। ग्रामीण बताते हैं कि करीब 10 वर्ष पहले एक बालक की मौत हो गई थी। तब दो दिन तक लगातार तेज बारिश होने के कारण नाला उफान पर होने की वजह से उन्हें निजी भूमि में अंतिम संस्कार करना पड़ा।

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ग्रामीणों का आरोप है कि जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदारों को कई बार अवगत करवाया। मगर उन्होंने इस ओर अब तक ध्यान नहीं गया है। जिसके चलते ग्रामीण अभी परेशानी में जीने को मजबूर हैं।

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