रायपुर। छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी के जांजगीर-चांपा जिला पंचायत सीईओ रहते हुए मनरेगा के कार्य में अनियमितता बरती थी. भाजपा विधायक अजय चंद्राकर के सवाल पर विधानसभा मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने जवाब देते हुए सोनवानी के खिलाफ हुई जांच में आरोपों को प्रमाणित पाए जाने के साथ की गई कार्रवाई से अवगत कराया. इसे भी पढ़ें : बलौदाबाजार हिंसा पर गृह मंत्री विजय शर्मा का बड़ा बयान, कहा- पूरे षड्यंत्र का होगा पर्दाफाश, अभी होंगी और कार्रवाइयां…

भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने मुख्यमंत्री साय से सवाल किया कि क्या वर्ष 2012 से 2014 के समयांतराल में तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत जांजगीर-चांपा के विरूद्ध महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एवं अन्य योजनाओं में अनियमितता के संबंध में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने कोई जांच की थी? जांच में कौन-कौन से बिन्दु सही पाये गये थे?

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने बताया कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आदेश पर एक करोड़ से अधिक व्यय करने पर राज्य के ऐसे 9 ग्राम पंचायतों की जांच करने के लिए तीन जांच दल गठित किया गया था. जांच के निष्कर्ष में पाया गया कि 6 ग्राम पंचायतों के पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों, जनपद पंचायत मालखरौदा एवं जिला पंचायत के अधिकारियों/कर्मचारियों ने योजना के दिशा-निर्देश व शासकीय निर्देशों का खुला उल्लघंन किया गया एवं शासकीय राशि का दुरूपयोग किया गया. जांच प्रतिवेदन में प्रशासकीय स्वीकृति जारी करने वाले अधिकारी द्वारा जिम्मेदारी का निर्वहन सही ढंग से नहीं किए जाने का भी उल्लेख किया है, जो कि प्रथम दृष्टया प्रमाणित होता है.

दूसरा सवाल कि क्या पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा अखिल भारतीय सेवाएं के नियम-8 के तहत् जांच के लिये सामान्य प्रशासन विभाग को समुचित कार्यवाही के लिये लिखा गया है? यदि हां, तो जांच अधिकारी कौन थे और विभागीय प्रस्तुतकर्ता अधिकारी कौन थे? जांच सही पाई गई की गलत?

मुख्यमंत्री साय ने बताया कि प्रकरण में विभागीय जांच आयुक्त, रायपुर जांचकर्ता अधिकारी एवं अपर आयुक्त, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना को प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नियुक्त किया गया था. विभाग द्वारा तत्कालीन जांजगीर-चांपा जिला पंचायत सीईओ टामन सिंह सोनवानी के विरूद्ध 12 आरोप अधिरोपित किए गए. जांच अधिकारी ने उक्त अधिरोपित आरोपों में से तीन आरोप प्रमाणित और तीन आरोप आंशिक रूप से प्रमाणित पाए थे. शेष आरोप प्रमाणित नहीं हो पाए.

वहीं अजय चंद्राकर के सवाल कि यदि जांच सही पाई गई थी तो संबंधित के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई और नहीं की गई तो क्यों?

इसके जवाब में मुख्यमंत्री साय ने बताया कि प्रकरण में 3.7.2019 को जारी सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश में जांजगीर-चांपा जिला पंचायत सीईओ टामन सिंह सोनवानी के विरूद्ध एक वर्ष की अवधि के लिए समय वेतनमान में एक स्तर से निचले स्तर में कटौती किए जाने की शास्ति अधिरोपित की गई थी.

वहीं अजय चंद्राकर के शिकायत के संबंध में मुख्य सचिव को लिखे गए पत्र पर की गई कार्यवाही की मांगी जानकारी पर मुख्यमंत्री ने बताया कि उक्त शिकायत के संबंध में विधायक द्वारा मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ शासन को लिखे गए पत्र दिनांक 25.06.2024 के संदर्भ में विधायक महोदय को विभागीय पत्र क्रमांक 2-01/2016/एक/2, दिनांक 08.07.2024 द्वारा वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया है.

जिन आरोपों को पाया गया था सही

जॉजगीर-चांपा जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी टामन सिंह सोनवानी के विरूद्ध अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम, 1969 के तहत् अधिरोपित आरोपों में से तीन आरोप प्रमाणिक पाए गए थे.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि 13वें वित्त आयोग अंतर्गत जिलें को प्राप्त आवंटन के अनुरूप कार्यों की स्वीकृति प्रदाय किया जाता, परन्तु आपके द्वारा 13 वें वित्त आयोग मद में प्राप्त आबंटन से अधिक राशि के स्वीकृति आदेश जारी किये गये. जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3(1) एवं 3(3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि 13वें वित्त आयोग मद हेतु उच्च समिति द्वारा अनुमोदित कार्ययोजना एवं शासन के निर्देशों का पालन करते हुए कार्यों की स्वीकृति दिया जाता, परन्तु 13 वें वित्त आयोग मद हेतु राज्य उच्च अधिकार समिति द्वारा अनुमोदित वार्षिक कार्ययोजना एवं राज्य सरकार द्वारा दिये गये निर्देश अनुसार मदवार प्रतिशत के आधार पर राशि की स्वीकृति न कर अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से मनमानी पूर्ण आपके द्वारा अधोसंरचना निर्माण कार्य के अधिकतर कार्य स्वीकृत किया गया. जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3(1) एवं 3(3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में 13वें वित्त आयोग अंतर्गत सदस्यों से प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर स्वीकृति आदेश जारी किया जाता, परन्तु आपके द्वारा जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक दिनांक 11.06.2014 में 13वें वित्त आयोग योजनांतर्गत सदस्यों के प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर प्राथमिकता क्रम से अनुमोदन के आधार पर स्वीकृति आदेश जारी करने के निर्देश का पालन नहीं किया गया, जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3(1) एवं 3(3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.

जिनमें पाए गए थे आंशिक प्रमाणित

जॉजगीर-चांपा जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी टामन सिंह सोनवानी के विरूद्ध अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन तथा अपील) नियम, 1969 के तहत् अधिरोपित आरोपों में से तीन आरोप प्रमाणिक पाए गए थे.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि आप महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत संबंधित ग्राम पंचायतों से प्राप्त रोजगार की मांग को ध्यान में रखकर उन ग्राम पंचायतों हेतु निर्माण कार्यों की स्वीकृति जारी करते, परन्तु आपके द्वारा यह सुनिश्चित किये बगैर ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की मांग है या नहीं, अनेक पंचायतों में जानबूझकर अत्यधिक निर्माण कार्यों की स्वीकृति जारी किया गया, जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3 (1) एवं 3(3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत संबंधित ग्राम पचायत की कार्ययोजना में सम्मिलित कार्यों का ही स्वीकृति आदेश जारी करते, परन्तु आपके द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत कार्य-योजना से बाहर के अधिकांश कार्य स्वीकृत किये गये, जो मनरेगा के दिशा निर्देश के विपरीत है. आपके उक्त कृत्य अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3 (1) एवं 3 (3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.

आरोप
जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की हैसियत से यह दायित्व था कि महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कार्यों की स्वीकृति करते समय मजदूरी एवं सामग्री अनुपात 60:40 का उल्लंघन न हो, परन्तु आपके द्वारा कार्य की स्वीकृति करते समय ग्राम पंचायत स्तर पर 60:40 मजदूरी एवं सामग्री के अनुपात के प्रावधान का बिल्कुल पालन नहीं किया गया, जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 3(1) एवं 3 (3) (1) के विपरीत होकर कदाचरण की श्रेणी में आता है.