रायपुर। 33 करोड़ रुपए से ज्यादा की दवाएँ कालातीत हो गईं. ⁠⁠करीब 50 करोड़ के मेडिकल उपकरण अनुपयोगी पड़े रहे. ⁠24 करोड़ की दवाएं ब्लैक लिस्टेड कंपनियों से खरीदी गई. ⁠कोविड के दौरान बिना अनुशंसा 23 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी गई. ⁠838 स्वास्थ्य संस्थानों के पास अपना भवन नहीं, ⁠42 सीएचसी में ब्लड बैंक नहीं है. यह बड़ा खुलासा आज छत्तीसगढ़ विधानसभा में स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी कैग रिपोर्ट में किया गया है. इसे भी पढ़ें : स्पंज आयरन प्लांट के लिए बिना जगह को देखे दे दी अनुमति!, हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी, राज्य सरकार के साथ पर्यावरण विभाग और प्लांट प्रबंधन से मांगा जवाब…

मार्च 2022 को समाप्त वर्ष तक के लिए तैयार ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि जिन कंपनियों ने घटिया दवा की सप्लाई की, उनसे क्वालिटी वाली दवा लेना तो दूर ना तो जुर्माना लगाया और ना ही डैमेज शुल्क लिया गया. कोविड काल में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए, लिक्विड टैंक खरीदे गए, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ. यही नहीं दवा और उपकरण खरीदी के लिए CGMSC के सॉफ्टवेयर में इंटीग्रेशन नहीं होने के कारण पेमेंट की ओवरलैपिंग भी हुई.

स्वास्थ्य विभाग में स्वीकृत पदों की तुलना में अधिकारी-कर्मचारियों की भर्ती में बहुत बड़ा अंतर है. रिपोर्ट के मुताबिक, 23 जिला अस्पतालों में 33 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी है. पैरामेडिकल स्टाफ 13 प्रतिशत तक कम हैं. सीएचसी की हालत और खराब हैं, यहां 72 प्रतिशत स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी हैं. 32 प्रतिशत नर्स और 36 प्रतिशत पैरामेडिकल स्टाफ की कमी हैं.

राज्य के कई सरकारी मेडकिल कॉलेजों में एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं, जिसके चलते आठ-आठ साल से वो विभाग भी शुरू नहीं हो पाया है. जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में कैंसर यूनिट नहीं शुरू हो सकी. इसी तरह राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं होने के चलते हृदयरोग विज्ञान, वृक्क और तंत्रिका विज्ञान विभाग का ओपीडी नहीं शुरू हो सका.

सीएजी रिपोर्ट में CGMSC की गंभीर खामियों पर भी सवाल उठाए गए हैं. 2016 से 2022 के बीच, सीजीएमएससी ने 3753 करोड़ रुपये की दवा, उपकरण और अन्य समान खरीदे हैं, लेकिन इसमें भारी अनियमितताएँ की गई हैं. मेडिकल सामानों की सेंट्रल एजेंसी होने के बावजूद, 27 से 56 फीसदी खरीदी लोकल पर्जेच के माध्यम से करनी पड़ी, क्योंकि जरूरत के अनुसार क्रय नियमावली तैयार नहीं की जा सकी. 278 निविदाएं CGMSC की ओर से निकाली गई, लेकिन इनमें से 165 टेंडर दो-दो साल तक फाइनल नहीं किए जा सके. इससे वक्त पर सप्लाई नहीं हुआ, और महंगे दाम पर लोकल पर्चेज करना पड़ा.

अस्पतालों में मशीनों की जरुरत कितनी है, इसे ऑपरेट कैसे किया जाएगा, इसका परीक्षण किए बिना उपकरण खरीदे गए. ऐसे 50 करोड़ के उपकरण बेकार पड़े हैं. हद तो तब हो गई जब सीजीएमएससी ने ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से करीब 24 करोड़ की दवाएं खरीद लीं.