कुमार इंदर, जबलपुर।  RSS को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के जजमेंट को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा ने बयान देते हुए कहा कि जो बातें जजमेंट में कहीं गई, वो आवश्यक नहीं थी। उन्होंने कहा कि RSS पर प्रतिबंध कोर्ट ने नहीं हटाया था। बल्कि उसे सरकार ने अलग किया था। आरएसएस को लेकर लगा मुकदमा एक लाईन में खत्म किया जा सकता था। तंखा ने कहा कि RSS को लेकर HC के जजमेंट में जजेस का पर्सनल व्यू झलकता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत टिप्पणी आदेश में परिलक्षित नहीं करनी है।

वहीं सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखा में जाने देने की बहस पर विवेक तंखा ने कहा कि आरएसएस को हलफनामा देकर ये बताना चाहिए कि उनका भाजपा से कोई संबंध नहीं है। वह भाजपा की किसी तरह से मदद नहीं करते हैं। तभी तो लोग उस शाखा में जा सकते हैं। वरना वह एक पॉलिटिकल संगठन है। तंखा ने कहा कि आरएसएस को अपनी स्थिति क्लियर करनी होगी, तभी जनता उस पर विश्वास करेगी। मैंने खुद दो चुनाव लड़े हैं। जबलपुर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ते हुए मैंने यह देखा है कि RSS ने किस तरह बीजेपी का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट समर्थन किया है। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि आरएसएस का बीजेपी से कोई संबंध नहीं है।

क्या है पूरा मामला
दरअसल आरएसएस की शाखा में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर रोक को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका लगी थी। इसी पर सुनवाई करते हुए इंदौर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार को आखिर इस प्रतिबंध पर फैसला लेने के लिए पांच दशक क्यों लग गए? हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या सरकार पांच दशक से यह तय नहीं कर पा रही थी कि आरएसएस की शाखा में सरकारी कर्मचारियों का जाना उचित है या नहीं।

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