रायपुर। घर ही इंसान का पहला मंदिर है, तीर्थ है, गंगा है, पाठशाला है। जहां शांति, सहजता, सह्दयता, आनंद का अनुभव होता है, वह घर मंदिर होता है। यह विचार जय समवसरण, रायपुर टैगोर नगर लाल गंगा पटवा भवन में “घर को बनाएं मन्दिर” व्याख्यानमाला में मुनि सुधाकर ने कहें।

प्रवचन में उपस्थित विशाल जनमेदनी को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि धर्म की शुरुआत किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, धर्म स्थान की जगह, अपने स्वयं के घर से हो। आगे स्वर्ग या नरक है, उसके चिन्तन की अपेक्षा भाई-भाई, सास-बहू, देरानी-जेठानी इत्यादि परिवार के सदस्यों के बीच आपसी सौहार्द है, अपनत्व है, मैत्रीपूर्ण व्यवहार है, वह घर ही स्वर्ग के समान है। जहां दूराव, टकराव, मनमुटाव हो, वह घर नरक के समान होता है। सुखी परिवार ही सुखी जीवन का आधार है।

मुनिश्री ने कहा कि राम के समय मर्यादा, महावीर के समय अहिंसा की जरूरत थी, पर वर्तमान में प्रेम की जरूरत है। प्रेम ही धर्म बने, ग्रंथ बने, जीवन का आधार बने। जिस घर में प्रेम-मोहब्बत होती है, वहां दौलत और शोहरत का वास होता है। वह घर ही भरत चक्रवर्ती के घर की तरह मोक्ष का धाम बन जाता है।

पंचसूत्रीय घर को मन्दिर बनाने के सूत्रों का प्रतिपादन करते हुए मुनि श्री ने कहा कि परिवार के सदस्य एक दूसरे के कार्यो में सहभागी बने, सहयोगी बने, हाथ बढ़ाये, काम बंटायें। एक-दूसरे की प्रसन्नता में खुद की प्रसन्नता माने। दूसरे सूत्र में कहा परिवार के सदस्य संगठन में रहे, सम्मान करें तो दूसरे कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सकते। क्या तेरा, क्या मेरा, यह दुनिया रेन बसेरा को आत्मसात करते हुए तीसरे सूत्र में त्याग के लिए तैयार रहने की प्रेरणा दी। चौथे सूत्र में बताया कि जहां सम्प है, वहां संपत्ति हैं। मंदिर में मां को चुन्दड़ी ओढ़ाने, भगवान को भोग लगाने से पहले, अपने माता-पिता, सास-ससुर, भाई-बहन का सम्मान करना चाहिए। प्रेम, सहयोग से रहने से, सम्प से रहने से, लक्ष्मी का वास होता है।

पांचवें और अति महत्वपूर्ण सूत्र के साथ विशेष पाथेय प्रदान करते हुए मुनि श्री ने कहा कि स्वच्छता है मन्दिर का सौपान। जिस घर के छत या तलघर में अटाला, कबाड़ पड़ा रहता है, वह सबसे बड़ा वास्तु दोष का कारण बनता है। अशांति का कारण बनता है। अहिंसा की दृष्टि से जीवों की उत्पत्ति का कारण बनता है।

मुनि नरेशकुमार ने कहा कि धर्म को जीवन का सर्वस्व माने, धन से अधिक धर्म को महत्व दें, धर्म जीवन का प्राण है। तेरापंथ परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र डागा बताया आठ एवंआठ से ऊपर की तपस्या लगभग 17 भाई-बहन गतिमान है। मुस्कान भंसाली के नौ की तपस्या के उपलक्ष में भंसाली परिवार की बहनों ने गीत का संगान किया।