नेता प्रतिपक्ष के तौर पर लोकसभा में दिया गया राहुल गांधी का दूसरा भाषण भी विवादों में आ गया है. सोमवार 29 जुलाई को बजट पर चर्चा के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी ने जो भाषण दिया था, उसके कुछ शब्दों को संसद की रिकॉर्ड से हटा दिया गया है.

राहुल गांधी के दूसरे भाषण से जिन शब्दों को हटाया गया है, उनमें अजित डोभाल, मोहन भागवत, अंबानी और अडानी है. राहुल गांधी ने अपने 45 मिनट के भाषण में इन 4 का नाम लिया था, जिस पर स्पीकर ओम बिरला ने आपत्ति भी जताई थी.

राहुल गांधी ने संसद में क्या कहा था?

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, “हजारों साल पहले, कुरूक्षेत्र में 6 लोगों ने अभिमन्यु को ‘चक्रव्यूह’ में फंसाया और उसे मार डाला. मैंने थोड़ा शोध किया और पता चला कि ‘चक्रव्यूह’ को ‘पद्मव्यूह’ के नाम से भी जाना जाता है।” ‘ जिसका अर्थ है ‘कमल निर्माण’। ‘चक्रव्यूह’ कमल के आकार का है। 21वीं सदी में एक नया ‘चक्रव्यूह’ रचा गया है. वह भी कमल के रूप में अभिमन्यु के साथ जो किया गया, वही भारत के साथ किया जा रहा है – युवा, किसान, महिलाएं, छोटे और मध्यम व्यवसाय आज भी ‘चक्रव्यूह’ के केंद्र में छह लोग हैं. आज भी 6 लोग नियंत्रण करते हैं, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, अजीत डोभाल, अंबानी और अडानी।” स्पीकर ओम बिरला के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने कहा, ” अगर आप चाहें तो मैं एनएसए, अंबानी और अडानी का नाम छोड़ दूंगा और सिर्फ 3 नाम लूंगा.”

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भाषण से पहले भी हटाए गए थे अंश

राहुल गांधी ने 1 जुलाई को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर संसद में पहला भाषण दिया था. उन्होंने तब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान भाषण दिया था. पहले भाषण में राहुल ने संविधान की कॉपी और भगवान शिव की तस्वीर दिखाकर अपनी बात रखी थी. उनके पहले भाषण के एक बड़े हिस्से को संसदीय रिकॉर्ड से हटा दिया गया था.

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भाषण के अंश हटाने के बाद राहुल गांधी ने नाराजगी जाहिर करते हुए लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी भी लिखी थी. राहुल गांधी ने चिट्ठी में लिखा था कि मैं यह देखकर स्तब्ध हूं कि किस तरह मेरे भाषण के एक बड़े हिस्से को कार्यवाही से निकाल दिया गया और उसे अंश हटाने की आड़ में हटा दिया गया. राहुल ने ये भी दावा किया था कि हटाए गए अंश नियम 380 के दायरे में नहीं आते.

संसद के किस नियम के तहत हटाए जाते हैं शब्द?

संसद के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 380 (निष्कासन) में कहा गया है कि अगर अध्यक्ष या सभापति की राय है कि वाद-विवाद में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है. जो अपमानजनक, अमर्यादित, असंसदीय या अशोभनीय हैं. तब सदन अध्यक्ष या सभापति अपने विवेक का प्रयोग करते हुए ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकालने का आदेश दे सकते हैं.