शुभम नांदेकर, पांढुर्णा (छिंदवाड़ा)। नागद्वार यात्रा हर साल नागपंचमी के 10 दिन पहले शुरु की जाती है। इस बार यात्रा 1अगस्त से शुरू हो रही है। सतपुड़ा के ऊंचे पेड़ नादियां, पहाड़ और झरनों को पार करते हुए करीब 12 किलो तक का ऊंची पहाड़ियों से गुजरते हुए यात्रा करना होता है। लौटने में यात्रियों को दो दिन लग जाते हैं। यात्रा पचमढ़ी से शुरू होती है।
अमरनाथ जैसी कठिन यात्रा आमतौर पर सीजन के मुताबिक यात्रियों को बारिश का सामना करना पड़ता है। कहा जाता है कि ये अमरनाथ जैसी कठिन यात्रा ही है। वहां पर पैदल ही चलना है। कोई भी घोड़े-खच्चर की सुविधा नहीं है। नागद्वार के यात्रा करते समय ऊंचे पहाड़ों पर गुफाएं भी नजर आती है। जिसका अपना धार्मिक महत्व है। यात्रा के दौरान रास्ते में देनवा नदी सहित करीब 20 छोटे-छोटे नाले पड़ते हैं। जिनको पार करते हुए जाना होता है। इस पहाड़ी नालों के कलरव के बीच ऊंचे पहाड़ों से गिरने वाले झरने मन मोह लेते हैं। नागद्वार की गुफा करीब 35 फीट लंबी है।
पहला पड़ाव काजली
नागद्वार तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को कई पहाड़ियों से चढ़ना-उतरना होता है। रास्ते में काजली गांव पड़ता है, जो चारों ओर से नदियों से घिरा हुआ और पहाडियों से ढाका हुआ है। ऊंचाई से देखने में यह गांव इतना व्यवस्थित लगता मानों किसी चित्रकार ने यहां पर हर मकान, खेत नदियों को अपने रंगों से रंगा हो। यहां काजली वन ग्राम में पहले कुछ आदिवासी परिवार बसते थे। जिन्हे सतपुड़ा टाइगर रिजर्व ने हटा दिया। अब नागद्वारी यात्रा में आने वालों के लिए यहां ठहरने की खास व्यवस्था की जाती है। प्रशासन की ओर से यहां 100 वाटरप्रुफ टेंट लगाए जाते हैं। इसके आलावा जगह-जगह डस्टबिन और शौचालय की व्यवस्था की जाती है।
यात्रा का मार्ग
धूपगढ़ गणेश टेकरी, काजली, पश्चिम द्वार, पदमशेष, पश्चिम द्वार, नींबू द्वार चिंतामन बाबा, चित्रशाला माता। कई भक्त बाबा बेलखंड और नंदी गढ़ की यात्रा भी करते हैं। चित्रशाला माता और गुप्त गंगा को यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जाता है। नागद्वार यात्रा में मुख्य पड़ाव स्वर्ग द्वार है। स्वर्गद्वार तक पहुंचने के लिए दो पहाड़ियों के बीच लोहे की खड़ी सीढियां लगाई गई है।
यात्रा की मान्यता, लोग क्यों इतनी कठिन यात्रा करते हैं
इसे नाग राज की दुनिया भी कहा जाता है। वैसे भी हमारे देश में किसी खास मौसम में की जाने वाली यात्रा का कोई न कोई महत्व होता है या उसके पीछे कुछ कहानियां होती है। इस यात्रा का किसी पुराण या किसी भी धार्मिक पुस्तक से कोई लेना देना नहीं है। इसकी बस इतनी ही मान्यता है कि काजली गांव में रहने वाली एक महिला ने पुत्र प्राप्ति के लिए नागराज को काजल लगाने की मन्नत की थी। पुत्र प्राप्ति के बाद वह काजल लगाने पहुंची तो नागराज का विशाल रुप देखकर मोक्ष को प्राप्त हो गई। ये यात्रा लगभग 100 साल से शुरु हुई है।
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