छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में एक अनोखा मंदिर (Unique Temple) है. जहां गुफा में विराजित शिवलिंग (Shivling Worship) को माता के रूप में पूजा जाता है. हम बात कर रहे है फरसगांव (Farasgaon) जनपद अंतर्गत ग्राम आलोर की गुफा में विराजित शिवलिंग को लिंगई माता (Lingai Mata) की. मान्यता के मुताबिक इसके दर्शन साल में एक बार ही हो पाते हैं. इस दिन ही सैकड़ों निः संतान दंपत्ति औलाद की अभिलाषा लिए लिंगई माता की गुफा तक पहुंचते हैं. (lingai mata mandir)

आलोर की तरह ही एनएच 30 (NH 30) पर बहीगांव से 7 किमी दूर अमोड़ा में भी प्राचीन शिवलिंग की पूजा बम्हनीन माता (Bamhnin Mata) के रूप में भक्त करते हैं. बताया गया कि काले ग्रेनाइट से बना ऐसा ही शिवलिंग गढ़धनौरा, बडेखौली, नारना आदि स्थानों में मिले हैं, जो अन्य शिवलिंगों से कुछ अलग हैं. आमा जोगानी, भाजी जोगानी, माटी तिहार (Mati Tihar) आदि पर इसकी खास पूजा की जाती है.

प्राचीन गुफा (Ancient Cave Temple) में प्रतिष्ठित है शिवलिंग

जगदलपुर से 104 किमी दूर फरसगांव है. वहां से बड़ेडोंगर मार्ग पर 9वें किमी पर ग्राम आलोर (Alor Village) है. गांव के झांटीबंद पारा की पहाड़ी में एक प्राकृतिक गुफा है. इस प्राचीन गुफा में वर्षों पुराना शिवलिंग है. जिसे ग्रामीण लिंगई माता कहते हैं. पूरे छत्तीसगढ़ में आलोर ही ऐसी जगह है, जहां शिवलिंग की पूजा लिंगई माता रूप में होती है. देवी को संतानदात्री माना जाता है. बताया गया कि प्रति वर्ष गुफा बंद करने के पहले लिंगई माता के सामने बिखरी रेत को समतल कर दिया जाता है. अगले साल जब गुफा के द्वार से पत्थरों को हटाया जाता है.

तय करते हैं अपना पंचांग (lingai mata mandir)

उस समय सबसे पहले यह देखा जाता है कि रेत में किस तरह की आकृति उभरी है. आलोर निवासी बताते हैं कि पहले लिंगई माता की गुफा में देखे गए चिन्हों की सूचना बस्तर (Bastar) राजा को दी जाती थी, वे दशहरा के मौके पर आयोजित मुरिया दरबार (Muria Darbar) में चिन्हों के शुभ-अशुभ की जानकारी माँझियों को देकर प्रजा को सचेत रहने की अपील करते थे, पर अब यह परंपरा नहीं है.