लखनऊ। उत्तर प्रदेश में ‘नजूल भूमि’ (Nazool Land) को लेकर सियासत गरमा गई है। प्रदेश में नजूल संपत्ति विधेयक ने योगी आदित्यनाथ को भी मुश्किल में डाल दिया है। सरकार को इस विधेयक पर अपने ही लोगों का समर्थन नहीं मिल पा रहा हैं। विधानपरिषद में इसका जमकर विरोध हुआ। जिसके चलते यह विधेयक बीच में ही लटक गया, अब इसे प्रवर समिति के पास भेजा गया है। लेकिन क्या आप जानते है कि नजूल भूमि क्या होती है ? इस पर किसका अधिकार होता है ? इसका मालिक कौन होता है ? ऐसी जमीन का उपयोग कैसे किया जाता है ? आइए एक नजर डालते है कि आखिर ये नजूल भूमि है क्या…

क्या है नजूल भूमि..?

दरअसल, ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में देसी रियासतें थी, जिसमें कुछ ब्रिटिश हुकूमत की समर्थक तो कुछ ने उनके खिलाफ विद्रोह किया था। ब्रिटिश सेना और विद्रोह करने वाली रियासतों के बीच कई युद्ध हुए थे। इन लड़ाईयों में जो हार जाता था, अंग्रेस उसकी जमीन (छीन) पर कब्जा कर लेते थे। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब अंग्रेजों ने जमीनें खाली कर दीं। लेकिन उस समय राजाओं और राजघरानों के पास इन जमीनों पर अपना पूर्व स्वामित्व साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं थे। जिसके बाद भारत सरकार ने इन जमीनों को ‘नजूल भूमि’ के रूप में चिन्हित किया था। आपको भारत देश में कई जगहों पर साइन बोर्ड मिलेंगे जिसपर लिखा होता है ‘यह नजूल की जमीन है।’

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नजलू भूमि का मालिक कौन..?

नजलू भूमि का मालिक (स्वामित्व) संबंधित प्रदेश सरकारों के पास होता है, लेकिन इसे सीधे राज्य संपत्ति के रूप में प्रशासित नहीं किया जाता है। आमतौर पर राज्य सरकार ऐसी जमीनों को किसी को एक निश्चित अवधि के लिए पट्टे पर आवंटित करती है। लीज की अवधि 15 से 99 साल के बीच हो सकती है। लेकिन नजूल भूमि को वापस लेने, पट्टे को नवीनीकृत करने या इसे रद्द करने के लिए सरकार पूरी तरह से स्वतंत्र होती है।

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क्या है कानून..?

नजूल भूमि (स्थानांतरण) नियम, 1956 वह कानून है, जिसका उपयोग अधिकतर नजूल भूमि निर्णय के लिए किया जाता है। आमतौर पर सरकार नज़ूल भूमि का इस्तेमाल स्कूलों, अस्पतालों, ग्राम पंचायत भवनों आदि के निर्माण के लिए करती है। भारत के अलग अलग राज्यों में नजूल की जमीन से संबंधित अलग नियम और कानून हैं। देश के कई शहरों में नज़ूल भूमि को पट्टे पर हाउसिंग सोसाइटियों के लिए उपयोग किया जाता है।