वास्तविक जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ मिलने को लेकर बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को एक राय दी. बात चूंकी आरक्षण व्यवस्था में बदलाव की है तो इस पर राजनीति होना लाजमी है. शायद इसकी वजह राजनीतिक रोटी सेंकना हो. सुप्रीम कोर्ट ने SC और ST को आरक्षण के मुद्दे पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि SC और ST में सब-केटेगरी बनाई जा सकती है. इस पर कई नेताओं ने असहमति जताई है. अब बसपा सुप्रिमो मायावती ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
मायावती ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को अपने इस फैसले पर एक बार विचार जरूर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को और कांग्रेस पार्टी को इस संबंध में अपनी-अपनी सरकारों के समय में अदालत में बेहतर तरीके से पैरवी करनी चाहिए थी.
मायावती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के देविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में दिए गए फैसले के तहत राज्य सरकारें उप-वर्गीकरण के नाम पर आरक्षित वर्गों की नई सूची बना सकेंगी. जिससे नए मुद्दे उत्पन्न होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिए 2004 में 5 जजों की बेंच द्वारा ईवी चिन्नैयाह बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दिए गए 20 साल पुराने फैसले को पलट दिया है. जिसमें एससी और एसटी के वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी गई थी. साथ ही एससी और एसटी के उप-वर्गीकरण के बारे में भी स्थिति को स्पष्ट किया है.
आरक्षण को निष्प्रभावी बना देंगी राज्य सरकारें- मायावती
उन्होंने आगे कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट के इस फैसली की आड़ में राज्य सरकारे एससी-एसटी को मिलने वाले आरक्षण को निष्प्रभावी बना देंगी.’ मायावती ने दो टूक लहजे में कहा कि भविष्य में आरक्षण में किसी भी तरह के बदलाव की कोशिशें न हों.
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बता दें कि गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि राज्यों द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है. ताकि उनमें ज्यादा पिछड़ी जातियों के लिए कोटा सुनिश्चित किया जा सके. इस फैसले को CJI चंद्रचूड़ सहित 6 जजों ने समर्थन दिया. हालांकि जस्टिस बेला त्रिवेदी इससे असहमत रहीं.
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