Sheikh Hasina On Jamaat-e-Islami: बांग्लादेश (Bangladesh Violence) की प्रधानमंत्री शेख हसीना की 15 साल से चली आ रही सत्ता का अंत इस तरह होगा, खुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। दंगाइयों के सामने घूटने टेकने के बाद सेना ने शेख हसीना को बांग्लादेश से भागने के लिए सिर्फ 45 मिनट दिया और इस तरह 15 साल की सत्ता का 45 मिनट में अंत हो गया। हालांकि शेख हसीना की सत्ता गंवाने के पीछे आंदोलन तो सिर्फ एक मोहरा है। असल खेल तो जमात-ए-इस्लामी ने शेख हसीना के साथ खेला और बिना चुनाव लड़े ही उन्हें सत्ता से बेदखल करने के बाद बांग्लादेश से ही जान बचाकर भागने को मजबूर कर दिया।

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दरअसल शेख हसीना सरकार ने हाल ही में जमात-ए-इस्लामी, इसकी छात्र शाखा और इससे जुड़े अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह कदम बांग्लादेश में कई सप्ताह तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया था। कहा जा रहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के बाद ये संगठन शेख हसीना सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।

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जमात-ए-इस्लामी क्या है?

जमात-ए-इस्लामी का अंग्रेजी अर्थ इस्लाम का समूह है और छात्र शिबिर का अर्थ है छात्रों का शिविर। रूस के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र, रॉसिस्काया गजेटा में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है और रूस में प्रतिबंधित किया गया है। जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत में हुई थी। 2018 में बांग्लादेश हाई कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए चुनाव आयोग ने जमात का पंजीकरण रद्द कर दिया था। इसके बाद जमात चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी।

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गृह मंत्रालय के सार्वजनिक सुरक्षा प्रभाग द्वारा जारी अधिसूचना में पुष्टि की गई है कि बांग्लादेश के अधिकारियों ने 1 अगस्त, 2024 को जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया है। जमात, छात्र शिबिर और अन्य संबंधित संगठनों पर प्रतिबंध आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 18(1) के तहत एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से आया। प्रतिबंध से पहले, कानून मंत्रालय ने अपनी कानूनी राय दी और फाइल को गृह मंत्रालय को भेज दिया। इसके बाद, कानून मंत्री अनीसुल हक ने संवाददाताओं से कहा कि ये समूह अब अपने मौजूदा नामों से राजनीति में शामिल नहीं हो पाएंगे।

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हिन्दुओं पर हमले में शामिल जमात-ए- इस्लामी

बता दें कि जमात-ए- इस्लामी का बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हमला करने में भी नाम आता रहा है। मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जमात-ए-इस्लामी और छात्र शिविर लगातार बांग्लादेश में हिन्दुओं को निशाना बनाते रहे हैं। बांग्लादेश में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों का आकलन है कि साल 2013 से 2022 तक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर 3600 हमले हुए हैं। इसमें जमात-ए-इस्लामी का कई घटनाओं में रोल रहा है।

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दोबारा हिंसक प्रदर्शन के पीछे हाथ?

माना जा रहा है कि बांग्लादेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हिंसक प्रदर्शन और शेख हसीना के विरोध के पीछे इसी संगठन का हाथ है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में आम चुनाव में हिस्सा ले चुकी है वहीं खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार में भी शामिल रही है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल रहने के बावजूद बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर चरमपंथी होने का आरोप लगता रहा है। बांग्लादेश हाई कोर्ट ने 1 अगस्त 2013 को एक ऐतिहासिक फैसले में चुनाव आयोग के साथ जमात के रजिस्ट्रेशन को अवैध घोषित कर दिया था। इसके बाद जमात ने अपीलीय डिविजन में अपील की लेकिन 2018 में बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने जमात-ए-इस्लामी का रजिस्ट्रेश रद्द कर दिया गया था, जिससे यह चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी।

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बांग्लादेश की स्थापना का विरोधी था जमात

बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली पहली सरकार ने देश की स्वतंत्रता का विरोध करने और पाकिस्तानी कब्जे वाली सेनाओं के साथ सहयोग करने में अपनी भूमिका के लिए जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में, बंगबंधु की हत्या के बाद, सैन्य तानाशाह जनरल जियाउर रहमान ने प्रतिबंध हटा दिया, जिससे जमात-ए-इस्लामी को देश में अपनी गतिविधियां फिर से शुरू करने में मदद मिली।

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जमात-ए-इस्लामी भारत में भी प्रतिबंधित

जमात-ए-इस्लामी भारत में भी प्रतिबंधित है, और 2003 से इसे रूसी संघ द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है। जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए, भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा, “आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ पीएम नरेंद्र मोदी जी की जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन करते हुए सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। यह संगठन राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ़ अपनी गतिविधियाँ जारी रखता पाया गया है। इस संगठन को पहली बार 28 फरवरी 2019 को “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया गया था। राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

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पाकिस्तानी विश्वविद्यालयों पर जमात का कब्जा

चुनावी राजनीति में अपनी भागीदारी के कारण जमात-ए-इस्लामी की पाकिस्तानी शाखा सबसे प्रमुख बनी हुई है। 1950 के दशक में, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान ने एक उग्रवादी छात्र विंग, इस्लामी जनियत-ए-तलबा की शुरुआत की, जिसने कई शहरी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर सफलतापूर्वक नियंत्रण हासिल किया, अक्सर हिंसक रणनीति के माध्यम से। छात्र विंग, जिसने 1988 तक कई क्षेत्रों में नियंत्रण बनाए रखा, ने जमात द्वारा हिंसा का पहला उपयोग किया।

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