कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पिछले दिनों आए फैसले पर दलित संगठनों में उबाल देखने को मिल रहा है। इसके मद्देनजर 21 अगस्त को भारत बंद का कुछ संगठनों ने ऐलान भी किया है। तो वहीं ग्वालियर के कुछ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर कर रहे हैं। 

जातिगत जनगणना के आदेश दिए जाएं- अधिवक्ता 

सुप्रीम कोर्ट से इन अधिवक्ताओं की मांग है ,कि पहले जातिगत जनगणना के आदेश दिए जाएं। जिससे बहुसंख्यक आबादी में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों की आर्थिक असमानता और उनकी विषमताओं के बारे में देश के सामने सच्चाई लाई जा सके। इसके बाद ही अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण में उप कोटा तय करने की बात की जाए।

सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क: कमलनाथ ने सरकार को घेरा, कहा- प्रदेश में कमीशन और भ्रष्टाचार का बोलबाला 

देश की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कहा गया था ,कि यदि राज्य सरकारों को लगता है, कि अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग की कोई जाति ज्यादा पिछड़ी है तो उसके लिए सब कोटा निर्धारित किया जा सकता है। जिसको लेकर ग्वालियर शहर के दलित अधिवक्ता विश्वजीत रतौनियां का कहना है, कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को सही जानकारियां मुहैया नहीं कराई है और हमेशा से गुमराह करने का काम किया है। 

सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर 

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 6 के मुकाबले एक से पारित किया है। जबकि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की वास्तविक संख्या उनकी सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में स्थिति अभी तक साफ नहीं है। जातिगत जनगणना के बाद ही उप कोटा निर्धारित किया जाए। ताकि समाज के हर वर्ग के साथ न्याय हो सके। अधिवक्ता रतौनिया ने बताया, कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है। उन्हें उम्मीद है, कि सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में सकारात्मक पहल होगी।

Supreme Court

Follow the LALLURAM.COM MP channel on WhatsApp
https://whatsapp.com/channel/0029Va6fzuULSmbeNxuA9j0m