सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। तमाम मनुहारों के बाद सरकार 2020 में छत्तीसगढ़ अशासकीय फीस विनिमय अधिनियम लेकर आई. उससे उम्मीद जगी थी कि निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम कसेगा, लेकिन शिक्षा विभाग निजी स्कूलों पर कार्रवाई करने में नाकाम साबित हुआ है. ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता सवाल कर रहे हैं कि आख़िर ये रिश्ता क्या कहलाता है? इसे भी पढ़ें : नंदकुमार बघेल के सलाहकार की नक्सलियों के साथ गिरफ्तारी पर सांसद संतोष पांडेय का पूर्व मुख्यमंत्री बघेल से सवाल- ‘बताएं ये रिश्ता क्या कहलाता है…’
सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने बताया कि जांच की जाए तो निजी स्कूलों का 2000 करोड़ का घोटाला सामने आएगा. धरना-प्रदर्शन, घेराव के साथ सैकड़ों शिकायत हुई है, लेकिन 2020 से अब तक पांच सालों में निजी स्कूलों पर एक भी कार्रवाई नहीं हुई है. सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा विभाग से जानकारी मांगी गई थी.
कुणाल शुक्ला बताते हैं कि शिक्षा विभाग ने लिखित में बताया कि 2020, 2021, 2022, 2023 और 2024 में अधिनियम के तहत एक भी कार्रवाई नहीं हुई. इस अधिनियम को निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए लाया गया था. मनमानी स्कूल फीस, ड्रेस और पाठ्यपुस्तक के नाम पर पालक लूटे जा रहे हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि हमारे पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में निजी स्कूलों की वसूली पर लगभग 500 करोड़ रुपए की कार्रवाई हुई है, ठीक वैसे ही नियम छत्तीसगढ़ में लागू है, लेकिन यहां कार्रवाई नहीं हो रही है. इस पर वे शिक्षा विभाग से सवाल करते हैं कि निजी स्कूलों से शिक्षा विभाग का क्या समझौता हुआ है?
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