राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। भारत (India) को 15 अगस्त, 1947 (15 August Independence Day) में अंग्रजों की हुकुमत से आजादी (Independence ) मिली थी। इस आजादी की खुशी भारत का तिरंगा लगा कर जहां पूरा देश माना रहा था वहीं एक राजधानी ऐसी भी थी जहां तिरंगा फहराने पर गोली मार दी जाती थी। राजधानी को आजादी दिलाने, कई नवयुवक जंग में उतरे और एक के बाद गोली खा कर शाहिद हुए।

15 अगस्त 1947 को भारत परतंत्र की बेढ़ियों से मुक्त हुआ, लेकिन देश के साथ मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को स्वतंत्रता नहीं मिल सकी। एक तरफ लाल किले की प्राचीर पर देश का तिरंगा खुली हवा में सांस ले रहा था, तो दूसरी ओर भोपाल में तिरंगा फहराने पर गोली मारने के आदेश थे। देश की आजादी के बाद भी भोपाल आखिर 22 महीने तक गुलामी की जंजीरों में क्यों जकड़ा रहा। आजाद भारत में भोपाल की आजादी के लिए क्रांतिकारियों को सड़कों पर क्यों उतरना पड़ा? ओर फिर कैसे भोपाल को आजादी मिल सकी। पढ़िए भारत की आजादी का इतिहास।

देश के इस हिस्से में स्वतंत्रता के बाद भी नहीं मिली थी ‘आजादी’; दो साल तक नहीं फहराया गया था तिरंगा…संघर्ष, आंदोलन और शहीदी की पढ़िए पूरी कहानी

सदियों की त्रासदी से मुक्‍त होकर भारत ने 15 अगस्‍त 1947 को स्‍वतंत्रता की नवीन प्रभात देखी। जहां एक ओर भारत अपनी स्‍वतंत्रता का मंगलगान गा रहा था। वहीं दूसरी ओर कई क्षेत्र ऐसे थे, जो तत्‍कालीन शासकों की महत्‍वाकांक्षाओं के कारण स्‍वतंत्रता से काफी दूर थे। मध्‍य प्रदेश का भोपाल भी ऐसे ही एक क्षेत्र की बानगी है। जिसे आजादी के लिए पूरे 22 महीने का इंतजार करना पड़ा। आजादी के लिए भोपाल के लोगाें का विद्रोह और तत्‍कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्‍लभ भाई पटेल के हस्‍तक्षेप के बाद 1 जून 1949 को भोपाल का भारत में विलय हुआ। और इस दिन भोपाल के जुमेराती स्थित डाकघर में पहली बार देश का तिरंगा फहराया गया।

भोपाल को स्‍वतंत्र‍ रियासत बनाए रखना चाहते थे नवाब

भारत स्‍वतंत्र हुआ तो रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि, वे चाहे तो भारत अथवा पाकिस्‍तान में शामिल हो सकती हैं। भोपाल के नवाब हमीदुल्‍लाह खान भोपाल रियासत को कश्‍मीर की तरह एक स्‍वतंत्र रियासत रखना चाहते थे, लेकिन वायसराय माउंटबेटन ने उनकी राय को खारिज कर दिया। ऐसे में नवाब ने 14 अगस्‍त तक कोई फैसला नहीं लिया और बाद में उन्हें भारत में विलय करने की इच्‍छा तो जाहिर करना पड़ी, लेकिन नवाब की कोशिश भोपाल को एक स्‍वतंत्र‍ रियासत बनाए रखने की ही रही।

स्‍वतंत्रता के बाद भी भोपाल की आजादी के लिए लड़ाई

  • नवाब ने मार्च 1948 में भारत से अलग रखकर भोपाल रियासत को स्‍वतंत्र घोषित कर दिया
  • मई 1948 में भोपाल मंत्रिमंडल का गठन कर अपने सबसे खास चतुरनारायाण मालवीय को प्रधानमंत्री बना दिया।
  • नवाब की इस घोषणा से भोपाल में विद्रोह शुुरू हुआ तो चतुर नारायाण मालवीय भी विलीनीकरण के पक्ष में खड़े हो गए।
  • दिसंबर 1948 में भोपाल में बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गए।
  • डाॅ शंकरदयाल शर्मा, भाई रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल के भारत में विलय के लिए विलीनीकरण आंदोलन शुरू हुआ।
  • आंदोलन बड़ा तो कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • 23 जनवरी 1949 को डाॅ शंकर दयाल शर्मा को आठ माह के लिए जेल भेज दिया गया।
  • 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल काे बर्खास्‍त कर दिया और सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए

गोलियां खाते गए नवयुवक लेकिन तिरंगा नहीं गिरने दिया


दिल्ली में गठित हो चुकी पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार तक मदद और भोपाल के नवाब तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए लोगों ने तय किया कि रायसेन जिले में स्थित बोरास गांव में मकर संक्रांति के मेले के अवसर पर तिरंगा लहराया जाएगा। इसकी सूचना भोपाल के नवाब को मिली तो वहां क्रूर थानेदार जाफर खान को तैनात कर दिया गया। जाफर खान ने ऐलान किया कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज को लहराने की कोशिश की तो गोली मार दी जाएगी।

एक के बाद एक नवयुवक ने खाई गोली


इस दौरान 16 साल के किशोर धन सिंह ने भीड़ को चीरते हुए तिरंगा लहरा दिया। जाफर खान ने उसे गोली मारी तो उसके दोस्तों ने तिरंगा थाम लिया। एक के बाद एक नवयुवक जमीन पर गिरते गए और तरंगे को थामते रहे और जाफर खान उन्हें गोली मारता रहा। इस तरह 6 युवकों को गोली मारी गई। भोपाल के इतिहास में यह घटना बोरास क्रांति या बोरास नरसंहार के रूप में दर्ज है। लेकिन भारत के इतिहास में भोपाल की इस आजादी की लड़ाई का जिक्र बिरले ही देखने को मिलता है.

सरदार वल्लभ भाई पटेल का नवाब को आया संदेश और आजाद हो गया भोपाल

भोपाल में चल रहे प्रदर्शन और गिरफ्तारियों के बीच कई क्रांतिकारियों को गोलियां मारी गईं। यह देख सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने सख्त रूख अपनाया। नवाब को संदेश भेजा कि भोपाल भारत का हिस्सा रहेगा और इसे मध्‍य भारत का हिस्‍सा बनाना ही होगा। भोपाल में हो रहे प्रदर्शन और सरदार पटेल के दबाव ने नवाब हमीदुल्‍लाह खान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और नवाब ने 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्‍ताक्षर कर दिए. 1 जून 1949 को वो तारीख जिस दिन भोपाल स्वतंत्र होकर भारत का अंग बन गया।

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