भारत की आजादी के संघर्ष में कई अनगिनत बलिदानों और वीरता की कहानियां शामिल हैं, जिनमें से राजा शंकरशाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह की कहानी विशेष स्थान रखती है। 1857 की क्रांति के नायकों में उनकी भूमिका अमूल्य थी। वे सिर्फ स्वतंत्रता की आकांक्षा के प्रतीक नहीं थे, बल्कि कविता और साहस के माध्यम से अंग्रेजों की हुकूमत को चुनौती देने वाले महापुरुष भी थे। राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने अपने अदम्य साहस और रचनात्मकता के द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया। अंग्रेजों ने उनके इस साहसिक प्रतिरोध को दमन के साथ उत्तर दिया और अंततः उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर शहीद कर दिया। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता की लौ को और प्रज्वलित किया, और आज भी उनकी वीरता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणास्त्रोत बनी हुई है।

नहीं झुका सिर


भारत देश को आजादी दिलाने में कई शहीदों और वीरों की वीर गाथा सुनाने को मिलती है, लेकिन आजादी की इस लड़ाई में दो वीर सपूत ऐसे भी थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के आगे अपना सर कटवाना कबूल किय, लेकिन ‘झुकना’ नहीं। हम बात कर रहे हैं 1857 की क्रांति के अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ बिगुल फूंकने वाले पिता पुत्र और गोंडवाना वंश के शासक राजा शंकर शाह और पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह की। जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपने प्राण तक निछावर कर दिए।

कविताओं का लिया था सहारा


अंग्रेजी हुकूमत दोनों पिता पुत्र के साहस से इतना भयभीत थे की इन्हें तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया। 1857 में अंग्रेजी हुकूमत की बढ़ते अत्याचार और दमनकारी नीति के विरोध में मध्य भारत में गोंडवाना वंश के शासक राजा शंकर शाह उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों की 52 में बटालियन को उड़ाने के लिए रणनीति बनाई। यही नहीं इन दोनों पिता पुत्र ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने के लिए कविताओं का भी सहारा लिया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पूरे मध्य भारत में माहौल बनाया।

चला देशद्रोह का मुकदमा


यही वजह थी की अंग्रेजों ने राजा शंकर शाह के बेटे रघुनाथ शाह के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया। तीन दिन तक चली सुनवाई के बाद आखिरकार पिता-पुत्र को फांसी की सजा मुक्करर की गई। लेकिन राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने मरना तो पसंद किया लेकिन अंग्रेजी फंदे से नहीं बल्कि अपनी ही तोप के मुंह से बांधकर उड़ा देने की ख्वाहिश रखी और हुआ भी ऐसे ही। फिर 18 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दोनों पिता और पुत्र को जबलपुर के माल गोदाम चौराहे पर तोप से बांधकर उड़ा दिया।

जानें इतिहास के पन्नों से तब की कहानी


दरअसल 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों और लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति के खिलाफ पहले स्वतंत्रता संग्राम की भूमिका तैयार हो रही थी। इस बात की जानकारी राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह को भी लगी, तो यह भी इस आजादी के आंदोलन में कूद पड़े इसके बाद पूरे मध्य भारत के राजवाड़े परिवार, जमीदार, मालगुजार सभी 52 गधों के सेनानी भी एक हो गए और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया। इसकी जानकारी अंग्रेजी हुकूमत को लगी तो राजा शंकर शाह और अरुण शाह को कैंटोनमेंट एरिया से हटकर रेजीडेंसी में रख दिया।

रसों का मुकदमा चलाया


इतना ही नहीं अंग्रेजी हुकूमत ने एक न्याय आयोग बनाकर दोनों पिता पुत्र पर रसों का मुकदमा चलाया। जिसकी कई दिन तक सुनवाई हुई और फिर इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह ने अंग्रेजी हुकूमत के बने फंदे से नहीं बल्कि अपनी ही टॉप से मरना पसंद किया।

मां काली के परम उपासक और नर्मदा के थे भक्‍त


राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह मां काली के परम उपासक और नर्मदा भक्‍त थे। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ऐसे गोंड शासक थे जिन्‍होनें देश, धर्म और संस्‍कृति की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। लेकिन अंग्रेजों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 के पहले सन् 1842 और 1818 में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हुए थे। लेकिन इसे भी इतिहास लेखन में स्‍थान नहीं दिया गया।

जहां मिली सजा वहा बनेगा संग्रहालय


राजा शंकर शाह उनके बेटे रघुनाथ शाह की इस शहादत को मध्य प्रदेश सरकार ने बलिदान दिवस के रुप में मनाने का फैसला लिया। तब से हर साल 18 सितंबर को राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस मनाया जाता है। यही नहीं जबलपुर के मालगोदम स्थित बना वह कमरा जहां आदिवासी नेता राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को 14 सितंबर 1857 को गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों ने बंदी बनाकर रखा था। जहां उन्हें सजा सुनाई गई थी, उसे अब संग्रहालय के रूप में विकसित किया जा रहा है।

तोप से बांधकर उड़ा दिया था


भारत देश में यह पहली घटना थी जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ दूर फूटने वालों को इस तरह से तोप से बांधकर उड़ा दिया गया था 18 सितंबर 1857 का वह दिन था जब अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पिता पुत्र को तोप से बांधकर भरी सभा में उड़ा दिया था। इसके बाद पिता पुत्र के पूरे शरीर के चीथड़े उड़ गए थे। जिन्हें उनकी पत्नियों ने जमा करके राजा शंकर शाह की छोटे बेटे लक्ष्मण शाह ने उनका अंतिम संस्कार किया था। जिसके बाद यह चिंगारी पूरे गोंडवाना साम्राज्य में 16 बन गई और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यह लड़ाई और तेज हो गई।

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