नई दिल्ली. आज ही के दिन 6 साल पहले दिल्ली की रात में बहुत सर्द थी, लेकिन सियासी शहर की सड़कों पर हलचल थी. किसी को इस बात का अंदेशा नहीं रहा होगा कि एक ऐसी घटना को अंजाम देने के लिए कुछ दरिंदे शिकार की तलाश में थे. पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया ( लोगों का दिया हुआ नाम) अपने दोस्त के साथ सिलेक्ट सिटी मॉल में सिनेमा देखने के लिए आई थी. वो शायद आने वाले खतरे से अनभिज्ञ थी, उसे क्या पता था कि सिलेक्ट सिटी मॉल से महज कुछ किमी दूर उसके साथ अनहोनी घटने वाली थी.

निर्भया और उसका दोस्त मुनिरका के बस स्टॉप पर पहुंचते हैं, वहां से वो अपने घर द्वारका जाने के लिए ऑटो वालों से मिन्नत करती है. कोई द्वारका जाने के लिए तैयार नहीं होता है तो कोई अधिक भाड़े की मांग करता है. ऐसे में दूर खड़ी बस में बैठे हुए उन दरिंदो को ये समझ में आता है कि उसका शिकार तो बहुत दूर नहीं है. बस के पायदान पर खड़ा हुआ वो नाबालिग निर्भया को दीदी, दीदी पुकार कर पूछता है कि आपको कहां जाना है. घर जाने की जल्दी, अगल बगल साधन के अभाव से परेशान वो कहती है द्वारका जाना है. नाबालिग लड़का कहता है कि आप परेशान क्यों हो रही हैं उसकी बस द्वारका जा रही है.

घर जाने की उम्मीद में निर्भया और उसका दोस्त बस में सवार होते हैं. मुनिरका बस स्टैंड से बस आगे बढ़ती है और बस में सवार उन नापाक भेड़ियों के दिमाग में बदनीयती की तरंगे हिलोरे मारना शुरू कर देती है. एक एक कर वो नापाक भेड़िए दुष्कर्म को अंजाम देते हैं, निर्भया अचेत हो जाती है उसका दोस्त प्रतिवाद करता है, लेकिन 6 लोगों के सामने वो बेबस हो जाता है.

महिपालपुर में वो दरिंदे निर्भया को सड़क किनारे पटक देते हैं. निर्भया का दोस्त राहगीरों से मदद की गुहार लगाता है, लेकिन मेट्रोपोलिटन शहर का चरित्र उसकी बेबसी और लाचारगी सुनने को तैयार नहीं होती है. कुछ समय के बाद पुलिस की पीसीआर वैन आती है उसे सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराती है जहां अब वो मौत से जंग लड़ती है. निर्भया को दो दिन बाद होश आता है तो उसे अपनी मां नजर आती है और वो पूछती है कि मां, पापा कैसे हैं, उसका दोस्त कैसा है, वो बोलने में असमर्थ है.

शायद दिल्ली को अहसास हो चुका होता है कि वो काली रात या दिन का उजाला उनके लिए भी काला हो सकता है. हजारों की भीड़ जिसका कोई नेता नहीं तत्कालीन सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरती है. सरकार जागती है वो निर्भया को बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर के एलिजाबेथ अस्पताल भेजती है लेकिन 13 दिन की जंग के बाद वो मौत के सामने हार जाती है.

वहीं मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली. विशेष तौर पर गठित त्वरित अदालत ने 12 सितंबर 2013 को चार दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई, जबकि एक आरोपी को स्कूली प्रमाणपत्र के आधार पर नाबालिग मानते हुए तीन साल किशोर सुधार गृह में रहने की सजा दी गई. वो अब रिहा हो चुका है.