महर्षि भृगु की भूमि, बलिया, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी विशेष पहचान बनाता है। बलिया की मिट्टी ने अमर सेनानी मंगल पांडेय को जन्म दिया, जिन्होंने 1857 की पहली बगावत का बिगुल फूंका। इससे लगभग एक सौ साल पहले, 19 अगस्त 1942 को, बलिया ने स्वतंत्रता की राह पर एक नया अध्याय जोड़ा। इसी बीच एक ऐसी ट्रेन जिसे आजादी एक्सप्रेस के रूप में आज तक जाना जाता है, यह ट्रेन बलिया के युवाओं ने बलिया रेलवे स्टेशन फूंकने के बाद लखनऊ तक चलाई थी। बलिया से जब यह ट्रेन चली तो लखनऊ तक इसका स्वागत किया गया।

आजादी की ये कहानी 15 अगस्त 1942, समय दोपहर के 1:00 बजे, जगह उत्तर प्रदेश में बलिया का रेलवे स्टेशन। छुक-छुक की आवाज शुरू हुई और लखनऊ के लिए पहली आजादी एक्सप्रेस चल पड़ी। इस ट्रेन में भलेही लोग कम थे, लेकिन इंजन और बोगियों के ऊपर तिरंगा लहराते युवाओं का जस्वा किसी से कम नहीं था। इस ट्रेन को बलिया के छात्रों ने रेलवे स्टेशन फूंकने के बाद कब्जा कर बरतानिया हुकूमत को चैलेंज करते हुए बलिया से लखनऊ तक चलाया गया था। आजादी की ये कहानी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

चूंकि मौका आज आजादी की वर्षगांठ है, तो दस्तूर है कि हम एक बार फिर इतिहास के उस पन्नों में झांके जहां आजादी की कहानी एक ट्रेन से शुरू हुई। उस वक्त बलिया जिले को सीमाओं में बांधने वाली गंगा और घाघरा दोनों ही नदियां उफान पर थीं जो जोर-जोर से चीख कर कह आजादी मांग रही थी। वहीं दूसरी ओर बलिया के लोग गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर बाहर आने के लिए बेताब थे।

फूंका बलिया रेलवे स्टेशन

मुंबई में महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के साथ शुरू हुई अगस्त क्रांति बलिया में आते आते ‘बलिया क्रांति’ में बदल गई। 9 अगस्त के दिन ही लोग अंग्रेज सरकार के खिलाफ खड़े हो गए थे। जो रोज सुबह जत्थे का जत्था निकलता और शाम तक अंग्रेजों की नाक में पानी भर दे रहा था। 15 अगस्त को भी बलिया वालों की ऐसी ही योजना थी।

इस दिन जिले के बड़े बुजुर्ग कलक्ट्रेट पर धावा बोलने वाले थे, लेकिन यहां के युवाओं के मन में तो कुछ और ही पक रहा था। सूर्य की लालिमा नजर आते ही युवा अपने घरों से निकले और 10 बजे बलिया रेलवे स्टेशन पहुंच गए। वहां सभा की और करीब 12 बजे रेलवे स्टेशन में आग लगा दी।

पहली बार चली ‘आजादी एक्सप्रेस’

बलिया से एक नई क्रांति की शुरुआत हुई जब गाजीपुर की ओर से आने वाली एक ट्रेन ने बलिया स्टेशन पर दस्तक दी। आग की लपटें अभी शांत भी नहीं हुई थीं कि करीब दो सौ युवाओं ने ट्रेन को घेर लिया और ड्राइवर को बंधक बना लिया। इस विशेष ट्रेन को ‘आजादी एक्सप्रेस’ के नाम से जाना गया। इन युवाओं ने ट्रेन के इंजन से लेकर बोगियों की छत तक तिरंगा लहरा दिया और आजादी के गीत गाते हुए इसे आगे बढ़ाया। अगले दिन सुबह यह ट्रेन लखनऊ पहुंची, जहां इसका भव्य स्वागत हुआ। इसके साथ ही गाजीपुर, फैजाबाद, और बाराबंकी में भी आजादी के दीवानों ने इसका स्वागत किया और ट्रेन में शामिल हो गए। इस ऐतिहासिक घटना ने बलिया की स्वतंत्रता की जंग में एक नया अध्याय जोड़ा।

18 अगस्त: बलिया में क्रांतिवीरों का कब्जा

17 अगस्त 1942 की सुबह, ‘आजादी एक्सप्रेस’ लखनऊ पहुंची और ट्रेन भरी हुई थी। बलिया में इसी दौरान अंग्रेज सरकार के खिलाफ जबरदस्त विद्रोह हुआ। 17 और 18 अगस्त को बलिया के क्रांतिवीरों ने जिले की सभी तहसीलों पर कब्जा कर लिया। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि पुलिस और प्रशासन के लोग खुद अपनी सुरक्षा में जुट गए। एक दिन पहले तक, जिन अधिकारियों ने अंग्रेजों के आदेश पर भीड़ पर कोड़े बरसाए थे, अब वे भीड़ के सामने भारतीय होने की गुहार लगाने लगे और अपनी जान की भीख मांग रहे थे। बलिया का यह साहसिक कदम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया।

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