महात्मा गांधी, जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य नायक के रूप में जाना जाता है। उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि मिलना भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह उपाधि गांधी जी को 1944 में उनके जीवनकाल में ही मिली, और इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।

उपाधि का आगाज़

गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ (Father of the Nation) की उपाधि पहली बार 1944 में सुभाष चंद्र बोस ने दी थी। सुभाष चंद्र बोस, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, ने गांधी जी को यह सम्मानित उपाधि तब दी जब उन्होंने गांधी जी के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और सम्मान प्रकट किया। बोस ने गांधी जी की निष्ठा और उनकी बलिदानी भावना की सराहना करते हुए यह उपाधि दी।

महात्मा गांधी का उत्तर


महात्मा गांधी ने इस उपाधि को स्वीकृत किया, लेकिन उन्होंने इसे अत्यधिक विनम्रता के साथ लिया। गांधी जी ने अपने कार्यों और विचारों के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा दी, और उन्होंने इसे व्यक्तिगत सम्मान की बजाए एक सामूहिक प्रयास के रूप में देखा। उन्होंने हमेशा सामूहिक नेतृत्व और जनसंघर्ष को महत्व दिया, और कभी भी अपने व्यक्तिगत सम्मान को प्राथमिकता नहीं दी।

उपाधि की पुष्टि और प्रतीकात्मक महत्व


गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ का सम्मान मिलना भारतीय जनता के लिए उनकी अमूल्य सेवाओं और योगदान की स्वीकृति थी। यह उपाधि स्वतंत्रता संग्राम में उनके नेतृत्व और सत्याग्रह की ताकत की गहरी पहचान थी। स्वतंत्रता संग्राम के नेता और राष्ट्र के लोगों ने उन्हें एक ऐसे मार्गदर्शक के रूप में देखा, जिन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को स्वतंत्रता और न्याय के लिए समर्पित किया।

महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ नाम देने का निर्णय सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया था, जो उनके प्रति एक गहरी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक था। गांधी जी ने इसे विनम्रता के साथ स्वीकार किया, और यह उपाधि आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक के रूप में याद की जाती है। गांधी जी की जीवन यात्रा और उनके नेतृत्व की गहराई को समझते हुए, इस उपाधि ने उनकी अपार सेवाओं और उनके विचारों की स्थायी स्वीकृति को दर्शाया।

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