रोहित कश्यप, मुंगेली. देश की आजादी की लड़ाई में देश के कोने -कोने से देशवासियों ने हिस्सा लिया और जेल भी गए, जहां कई तरह की यातनाओं का सामना भी करना पड़ा. इसके बाद भी जब देशभक्ति और देश को आजाद कराने का जुनून खत्म नहीं हुआ तो दोबारा भी जेल जाना पड़ा मगर पांव नहीं डगमगाया, इसलिए कहा जाता है कि भारत को यूं ही आजादी नहीं मिली है. इसके लिए अनगिनत देशवासियों ने ने प्राण न्यौछावर किया है. भारत की आजादी के लिए लड़ने वालों को अलग-अलग नाम से पुकारा गया, जिनमें से एक नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का है. जब भी फ्रीडम फाइटर्स का जिक्र हो तो अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर जिले के देवरी गांव का जिक्र अवश्य होता है, जो वर्तमान में मुंगेली जिले में आता है.
मध्यप्रदेश शासन काल के फ्रीडम फाइटर को लेकर आज भी देवरी गांव का नाम सुनहरे अक्षरों में रिकॉर्ड में दर्ज है, क्योंकि इस गांव में एक दो नहीं बल्कि 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी और देश को आजादी दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा, विदेशी वस्तु बहिष्कार, असहयोग आंदोलन, जंगल सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में इन्होंने भाग लिया और 1930 और 1932 में जेल भी गए.
पंडित जवाहर लाल नेहरू को पैदल चलने किया मजबूर
भारत के मानचित्र में मुंगेली क्षेत्र की स्थिति सुई के एक नोक के बराबर ही होगी. बावजूद इसके भारत की स्वतंत्रता संग्राम मेंं जान की परवाह न करके बढ़-चढकर हिस्सा लेने वाले मुंगेलीवासियों का योगदान गर्व करने योग्य है. उस समय मुंगेली के देवरी निवासी गजाधर साव को छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहा जाता था. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गजाधर साव मुंगेली क्षेत्र के महान सपूतों में एक थे. मुंगेली के पास के छोटे से ग्राम देवरी के मालगुजार साव 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन से आजादी के आंदोलन से जुड़ गए. 1917 में होमरूल आंदोलन के समय वे बिलासपुर शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि थे. 1921 में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई.
साव 25 मार्च 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में गांव के करीब 2 दर्जन साथियों के साथ पहुंचे. अधिवेशन के दौरान तत्कालीन अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल साव की कार्यशैली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मंच से इन्हें ‘छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहकर संबोधित किया. जनवरी 1932 में मुंगेली में विदेशी सामान बेचने वाले एक दुकान में ‘पिकेटिंग करने पर अंंग्रेज सरकार ने इन्हें 3 माह का कारावास और 125 रुपए का अर्थदंड भी लगाया था. सामाजिक सुधार के प्रति भी साव बेहद जागरूक थे. एक बार महात्मा गांधी ने आजादी दीवानगी पर कहा कि ‘साव जी, एक तो मैं पागल और आप मुझसे भी बड़े पागल हैं. ऐसे में देश आजाद होकर रहेगा. बड़े नेताओं के तामझाम के कारण आम जनता से उनकी दूरी को साव नापसंद करते थे. 16 दिसबर 1936 को कांग्रेस के प्रमुख पं. जवाहरलाल नेहरू मुंगेली आए तो साव का आग्रह था कि वे आगर नदी पुल से पैदल ही नगर में प्रवेश करें, मगर उनकी बात नहीं मानी गई, जिससे वे नाराज हो गए और पुल पर धरना देकर लेट गए. मनाने की कोशिश की गई पर वे नहीं माने, इस पर झल्लाकर पं. नेहरू ने कहा कि अगर साव नहीं उठते हैं तो इसके ऊपर से ही कार को चला दो. पं.नेहरू के इस उग्र रूप से भी साव ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अंतत: कुछ दूर तक पं. नेहरू को कार से उतरकर जाना ही पड़ा.
साप्ताहिक अखबार से विरोध दर्ज कर जेल गए
अपनी सादगी, सरलता के लिए पूरे क्षेत्र में मुंगेली के गांधी के रूप में माने जाने वाले पं. कालीचरण शुक्ल ने अपने साप्ताहिक अखबार के माध्यम से अंग्रेजों के विरूद्ध हमेशा आवाज उठाते रहते थे. इस कारण सदैव उन्हें जुर्माना भरना पड़ता था और कई बार तो उनका प्रेस ही जब्त हो जाता था, मगर अपने धुन के दीवाने पं. शुक्ला पैसे का इंतजाम कर जुर्माना भरते और फिर अंग्रेज शासन के विरूद्ध आवाज बुलंद करना शुरू कर देते थे. विदेशी कपड़ों की खिलाफत में आगे रहे बाबूलाल केशरवानी भी ऐसे ही धुन के पक्के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. 1932 में 20 वर्ष की आयु में ही साथियों के साथ गोलबाजार मुंगेली में घेवरचंद सूरजमल की कपड़ा दुकान के सामने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए आंदोलन करते हुए पकड़े गए. 1942 में पिकेटिंग के समय पं.शुक्ल, सिद्धगोपाल त्रिवेदी, हीरालाल दुबे, कन्हैयालाल सोनी और अनेक लोगों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर पहले बिलासपुर फिर अमरावती जेल भेज दिया गया.
देवरी गांव में हुए 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
देश को 22 स्वतंत्रता सेनानी देने वाला गांव देवरी है. आजादी की बात हो और मुंगेली के देवरी गांव का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं, जी हां, देवरी गांव में एक-दो नहीं बल्कि 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. इन सेनानियों ने भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा, विदेशी वस्तु बहिष्कार, असहयोग आंदोलन, जंगल सत्याग्रह आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गए. हालांकि इनमें से एक भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भले ही भौतिक रूप से मौजूद नहीं है, लेकिन न सिर्फ देवरी गांव बल्कि पूरे मुंगेली वासियों के दिलो में आज भी जिंदा हैं. वही उनके परिजन आज भी उन स्वंतत्रता संग्राम सेनानियों के जज्बे को याद करते नहीं थकते.
सुध नहीं लेने से फ्रीडम फाइटर्स के परिजनों का छलका दर्द
देवरी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों का कहना है कि गांव में 22 फ्रीडम फाइटर्स हुए. इसके बाद भी गांव में एक स्मारक या उनके नाम की पट्टिका तक देखने को नहीं मिलती है. वहीं उनके परिजन एवं गांव वालों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में प्रवेश द्वार जिसमें उनके नाम या चित्रों का उल्लेख हो और गांव में हाईस्कूल को हायर सेकेंडरी स्कूल में उन्नयन करने की मांग स्थानीय प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के समक्ष रखी है, लेकिन यह मांग अभी तक अधर में है. देवरी गांव में पानी, बिजली, सड़क को लेकर भी समुचित विकास नहीं हो पाया है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों का यह भी कहना है कि सरकारी नौकरियों की भर्ती व स्कूल कॉलेज में शिक्षण के लिए फ्रीडम फाइटर्स के परिजनों को विशेष रूप से प्राथमिकता दिया जाए. वहीं इन सबसे ज्यादा तकलीफ फ्रीडम फाइटर्स के परिजनों को इस बात को लेकर है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के दुनिया छोड़ जाने के बाद उनके परिजन किस हालत में रह रहे हैं. जिम्मेदारों द्वारा यह पूछना तो दूर अब उन्हें राष्ट्रीय पर्व के अवसरों पर भी नहीं पूछा जाता है, इस बात से परिजनों में बेहद पीड़ा है.
जानिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने मुंगेली गांव के इस ऐतिहासिक गांव देवरी में जाकर फ्रीडम फाइटर्स के परिजनों से मुलाकात कर उनका हालचाल जाना,इस दौरान परिजनों ने कई रोजमर्रा से जुड़े समस्याएं भी गिनाई तो वही आज भी कई दशक पूर्व परिजनों को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं मध्यप्रदेश शासन काल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के हाथों फ्रीडम फाइटर्स को सम्मानित किये गए अवसरों का न सिर्फ तस्वीरे दिखाई बल्कि उन ताम्रपत्र व प्रमाण पत्रों को भी दिखाया जो जिससे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को आजादी की लड़ाई के गौरव कार्य के लिए प्रदान किया गया था.
देश की स्वतंत्रता के 25 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 1972-73 में क्षेत्र के शहीदों एवं सेनानियों की याद को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए पुराना बस स्टैंड के पास एक शिलालेख स्थापित किया गया हैं, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बान्दु उर्फ बन्दर, सदाशिव सतनामी, कालीचरण शुक्ल, रामदयाल ब्राम्हण, नारायण राव, रघुपतराव ब्राम्हण, हीरालाल दुबे, सदानंद लाल ब्राम्हण, अवधराम, ददना सोनार, कन्हैयालाल, मथुरा प्रसाद सोनार, गंगा प्रसाद, हरीराम, उदयाशंकर, रामबुझास ब्राम्हण, नारायण राव, भीखा जी ब्राम्हण, बलदेव सिंह अदली, बिसाहू, रामचरण, बाबूलाल केशरवानी, द्वारिका प्रसाद केशरवानी, छोटेलाल, सरजू प्रसाद, देवदत्त भट्ट, विदेशी, शिवलाल, कन्हैया, भाईराम सेंगवा, भवानी शंकर, रघुबरप्रसाद, श्यामलाल, घनाराम, श्री सिद्धगोपाल, अयोध्या प्रसाद, झाडऱाम, मुल्लूराम तमेर, रामगोपाल, बंशीधर तिवारी, गनपतलाल, भागवत प्रसाद क्षत्री, गजानंद, रामचंद्र साव के नाम दर्ज हैं. कुछ नाम छूट गए हैं, जिनके बारे में बताने वाले ही अब नहीं हैं.
इस शिलालेख में अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम शामिल नहीं है, क्योंकि इस बात को बताने के लिए आज हमारे बीच कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जीवित नहीं है. इस शिला में उत्कीर्ण सूची संभवत: शासकीय दस्तावेजों में शामिल नाम के अनुसार है. हालांकि जिनका नाम इसमें नहीं है, स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में उनका योगदान इस बात से कम नहीं होता.
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