विक्रम मिश्रा, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव की चौसर में अपने मुहरों को सटीक बिठाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के सामने 69 हजार शिक्षकों का मुद्दा बड़ी फांस बनता नजर आ रहा है। कोर्ट के फैसले के बाद से विपक्ष लगातार हमलावर है तो वहीं बीजेपी इससे पार पाने के लिए अपने रणनीति पर फिर से विचार करने में जुटी हुई है।
शिक्षकों के मुद्दे ने जहां कन्नौज और अयोध्या की दो प्रमुख घटनाओं को लेकर सपा के खिलाफ हमलावर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। 69 हज़ार शिक्षकों की भर्ती को लेकर विपक्ष जिस तरह से भाजपा पर हमलावर है, उससे साफ जाहिर है कि इस मुद्दे को लेकर सियासत अब बहुत दूर तक चली जाएगी।
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आपको बता दें कि सरकार नौकरी और आरक्षण को लेकर किसी एक विचार को लेकर बचने के मूड में दिखाई दे रही है। अगर 69 हज़ार शिक्षकों की भर्ती रद्द होती है तो युवाओं का एक बड़ा तबका बेरोजगार हो जाएगा। सत्तापक्ष ये अच्छे से जनता है कि नौकरी और आरक्षण को लेकर लोकसभा चुनाव में जिस तरह से विपक्ष हमलावर रहा है, उसका खामियाजा उसको विधानसभा में भी भुगतना पड़ सकता है।
समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को ज़िंदा रखने के लिए अपना रुख साफ कर दिया है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव नौकरी और आरक्षण के मुद्दे पर अपना स्टैंड क्लियर करते हुए इस मसले को ज़िंदा रखने की रणनीति पर काम कर रहे है। तो वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी समेत विपक्ष के इस हथियार की धार को कुंद करने के लिए भाजपा भी अपनी रणनीति बनाने में जुटी हुई है।
भारतीय जनता पार्टी अपने शिक्षक प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों संग बैठक कर इसकी काट खोजने की कोशिशें कर रही है। यूपी में होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले इस मुद्दे को सियासी फलक से किनारे करने पर अपना समीकरण साधने की व्यवस्था बना रही है।
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