शशांक द्विवेदी, खजुराहो। बुंदेलखंड अपनी समृद्ध सभ्यता, इतिहास और उत्सवों के अनूठे रंगों के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र की लोक परंपराएं और त्योहार अपनी रोचक प्रथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हुए हैं। इन्हें वीरता और शौर्य से ओतप्रोत माना जाता है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है “कजलियां,” जो बुंदेलखंड में लोकपरंपरा और विश्वास का प्रतीक बन गया है।

हालांकि, आधुनिकता की दौड़ में इस पर्व की रौनक धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है, फिर भी कुछ ग्रामीण और शहरी इलाकों में इसे अभी भी जीवित रखा गया है। इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व भी है, जो इसे विशेष बनाता है।

ऐतिहासिक महत्व

कहते हैं कि महोबा के राजा परमाल की बेटी, राजकुमारी चंद्रावली, जब तालाब में अपनी सखी-सहेलियों के साथ कजलियां सिराने गई थी, उसी समय दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी। पृथ्वीराज का उद्देश्य राजकुमारी का अपहरण करना था। लेकिन महोबा के वीर सपूत आल्हा, ऊदल, मलखान, और चंद्रावली के ममेरे भाई अभई ने वीरता का परिचय देते हुए राजकुमारी की रक्षा की। इस संघर्ष में अभई वीरगति को प्राप्त हुआ और राजा परमाल का बेटा रंजीत भी शहीद हो गया।

आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद, और राजा परमाल के बेटे ब्रह्मा जैसे वीरों ने पृथ्वीराज की सेना को पराजित कर महोबा की रक्षा की। इस विजय के बाद, राजकुमारी चंद्रावली और अन्य लोगों ने अपनी-अपनी कजलियां खोतीं। तब से यह पर्व बुंदेलखंड में विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। “कजलियां” बुंदेलखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है, जिसे आने वाली पीढ़ियों को भी संजोकर रखना चाहिए।

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