केंद्र सरकार ने हाल ही में लेटरल एंट्री के जरिए मंत्रालयों में शीर्ष पदों के लिए सीधी बहाली का विज्ञापन निकाला था. विपक्ष ने इसके विरोध किया गया. इसके बाद इसे वापस ले लिया गया. यह कोई पहला मामला नहीं है जब लेटरल एंट्री के जरिए केंद्र सरकार के द्वारा अधिकारी स्तर के पदों को भरने की कोशिश की गई है. इससे पहले छठे केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिश पर कार्रवाई करते हुए मनमोहन सिंह की सरकार ने जनवरी 2011 में संयुक्त सचिव स्तर पर 10% पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने का प्रस्ताव दिया था. द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में इसका दावा किया है.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के एक नोट में कहा गया था कि लेटरल एंट्री में UPSC द्वारा उम्मीदवारों की सीवी और एक साक्षात्कार के आधार पर चुना जाएगा. कुछ ऐसे पदों की पहचान करने की सिफारिश छठे वेतन आयोग ने की थी जिनके लिए तकनीकी या विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है.

2 साल से अधिक समय बाद, जून 2013 में वेतन आयोग की सिफारिश की DOPT, व्यय विभाग और UPSC द्वारा जांच की गई थी. UPSC ने इसको लेकर सहमति जताई थी.

लेटरल एंट्री योजना पर 28 अप्रैल 2017 को PMO की बैठक में चर्चा की गई थी. इसे UPSC के दायरे से बाहर रखने और लेटरल भर्ती प्रक्रिया को सचिवों और बाहरी विशेषज्ञों से बनी 2 चयन समितियों के तहत संचालित करने के बारे में सहमति बनी थी. कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली चयन समिति को लेटरल एंट्री के लिए संयुक्त सचिवों का चयन करना था.

11 मई 2018 को DOPT के एक अधिकारी ने कहा कि अगर इन पदों को इस मार्ग से भरा जाना है तो UPSC विनियमन में संशोधन करना होगा. इसके बाद फाइल नोट में बताया गया है कि संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के पद अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय समूह ‘A’ सेवा के अधिकारियों से केंद्रीय स्टाफिंग योजना (CSS) के तहत प्रतिनियुक्ति पर भरे जाते हैं. एक साल के भीतर ही पुनर्विचार हुआ और सरकार ने लेटरल एंट्री भर्ती को UPSC को सौंपने का फैसला किया.

1 नवंबर 2018 को UPSC ने कहा कि वह एक बार में एक उम्मीदवार की सिफारिश करेगा और प्रत्येक पद के लिए 2 अन्य नामों को आरक्षित सूची में रखेगा. UPSC ने कहा, “चयन की इस प्रक्रिया को एक बार की प्रक्रिया के रूप में माना जा रहा है और इसे हर साल जारी रखने वाली नियमित प्रक्रिया नहीं माना जा रहा है.”