पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबन्द. भूपेश बघेल के सीएम बनते ही किडनी पीड़ित सुपेबेड़ा ग्राम के ग्रामीणों की उम्मीद जागी. ग्रामीण बोले पीसीसी अध्यक्ष थे तब भूपेश गाँव पहुंचकर पीड़ितों से सीधे रूबरू होकर बोले थे न्याय दिलाने हर सम्भव कदम उठाया जाएगा. पीड़ित परिवार को 5 लाख का मुवावजा, परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मांग किया था. उम्मीद है अब पूरी होगी.
दरअसल भूपेश बघेल बतौर पीसीसी अध्यक्ष रहते 18 जून को किडनी पीड़ितों की सुध लेने सुपेबेड़ा पहूँचे थे. तब गांव में चौपाल लगाकर एक-एक समस्या से अवगत हुए थे. कांग्रेस शूरू से ही किडनी पीड़ित परिवार के सदस्य को 5 लाख का मुवावजा व नौकरी देने का मांग किया था. यही वजह है कि अब कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सुपेबेड़ा के ग्रामीणों में उम्मीद जाग गई है. ग्रामीणों ने कहा कि मंत्री मंडल गठन होते ही प्रतिनिधि मंडल सीएम से जाकर उनके वायदे को याद दिलाएंगे.
इलाज कराना किए बंद
किडनी पीड़ित जिस कम्बूकता बाई के घर पहुंचकर भूपेश बघेल ने हाल चाल जाना था उस परिवार के अलावा गांव में मौजूद 165 किडनी पीड़ितों को बेहतर इलाज का इंतजार है. पिछली सरकार में निशुल्क इलाज के दावे का पोल खोलते हुए कम्बूकता के पति प्रभुलाल ने बताया कि उन्हें बेहतर उपचार का दावा कर मेकाहारा हो चाहे निजी रामकृष्ण अस्पताल हो, दोनो जगह दवा व इंजेक्शन के नाम पर रुपए मांगे जाते थे. भोजन तक खरीद कर खाना पड़ता था. इसलिए पिछले 4 माह से पीड़ित राज्यसरकार के एप्रोच पर उपचार कराना छोड़ दिया है. सकक्षम कुछ लोग तेलंगाना जाकर अपने खर्च से इलाज करा रहे.
फूंक दिए लाखों,कारण का अब तक पता नहीं
भूपेश जिस पूरनधर पुरैना का हाथ थाम कर भरोसा दिलाया था उनकी इच्छा शक्ति भी बढ़ गई है. पुरनधर ने कहा कि तीन साल में कई लाख फूंक दिये गए. दूर-दूर से वैज्ञानिक व डॉक्टर की टीम आई, लेकिन अब तक किसी ने नहीं बताया कि हमारे गांव के लोग, किडनी की बीमारी से क्यों पीड़ित है.
जरूरी रिपोर्ट दबा दिया गया
ग्रामीणों को इस बात का भी मलाल है कि, कृषि विभाग के एक गम्भीर रिपोर्ट जिसमे यहां के मिट्टी पानी में कैडमियम व क्रोमियम जैसे घातक तत्व मिलने की पुष्टि की गई थी. इस पर अमल करने के बजाए, अर्सनिक व फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाकर एक करोड़ रुपए फिजूल खर्च कर दिया गया. डेढ़ किमी दूर से साफ पानी देने का जो दावा किया गया है, वोल्टेज के कारण प्रभावित है. गांव में पर्याप्त पानी नहीं पहुंचने के कारण ग्रामीण उसी पानी को पीने मजबूर है, जिसे प्रतिबन्धित किया गया था.