हेमंत शर्मा इंदौर। जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इंदौर के ऐतिहासिक बाल गोपाल और बांके बिहारी मंदिर में कृष्ण भक्ति का आलौकिक दृश्य देखने को मिला। सुबह से ही दोनों मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। सभी अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण से आशीर्वाद लेने पहुंचे।

1832 ईस्वी में निर्मित गोपाल मंदिर

1832 ईस्वी में निर्मित यह मंदिर इंदौर के समृद्ध इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंदिर की स्थापना होलकर वंश के शासनकाल में हुई थी और इसे श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के प्रति समर्पित किया गया है। कहा जाता है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण की बाल रूप में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि लाती है। मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि पहले इस मंदिर में होलकर राज परिवार जन्माष्टमी के अवसर पर सलामी देने आता था।

लेकिन समय के साथ, भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, अब राज परिवार विशेष समय पर पूजा करने आता है। पुजारी ने यह भी बताया कि आज का मुहूर्त 5,032 साल पुराना है, जो भगवान कृष्ण के जन्म का समय माना जाता है। उन्होंने कहा कि इस दिन विशेष चमत्कार की उम्मीद भी की जा सकती है, और भक्तगण भगवान की कृपा पाने के लिए यहां पहुंचे हैं।

ढाई सौ साल पुराने मंदिर की स्थापना होलकर वंश ने की थी

इंदौर के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में भी आज जन्माष्टमी के अवसर पर सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। इस ढाई सौ साल पुराने मंदिर की स्थापना भी होलकर वंश ने की थी, और तब से लेकर आज तक यहां जन्माष्टमी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर की मान्यता है कि इस पावन दिन जो भी भक्त यहां सच्चे मन से कोई मनोकामना मांगते हैं, वह बाल गोपाल पूरी करते हैं।

इस वर्ष विशेष रूप से कोलकाता से मंगाई गई कृष्ण की ड्रेस ने भक्तों का ध्यान आकर्षित किया। मंदिर परिसर में चारों ओर कृष्ण भक्ति के गीत गूंज रहे थे, और भक्तजन नाच-गाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे थे। गोपाल और बांके बिहारी मंदिरों की यह अनूठी परंपरा और भक्तों का उत्साह इस बात का प्रमाण है कि श्रीकृष्ण की लीलाएं आज भी लोगों के हृदय में बसी हुई हैं।

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